Thursday, March 22, 2012

Gudhipadwa, the Hindu New Year (Chaitra Shukla Pratipada) - an introduction

1. Introduction : The holy festival which marks the beginning of the New Year, new month and new day for Hindus, falls on Chaitra Shukla Pratipadā (the first day of the bright fortnight of the Hindu lunar month of Chaitra). It is known as Gudhipadwa (Maharashtra) or Yugaadi (Ugadi) (Karnataka and Andhra Pradesh) in India. On this very day God Brahmā created the Universe. Therefore for Hindus, this day carries special importance. The day is celebrated with an auspicious bath, followed by decorating the main door with a garland (toran), performing ritualistic worship and hoisting the flag (DharmaDhwaj or Gudhi).

2. Significance and meaning of Gudhipadwa : The word Padva is derived from two syllables, Pad + Vaa.

Pad - Means tending towards perfection or maturity.
Vaa - In spirituality, the word 'Vaa' indicates that which increases growth.

God Brahmādev's creation of the universe i.e. a complete picture of the universe when ready, is pad. Later more was added or some alterations were made, so as to make the universe more beautiful and perfect. Therefore the day on which God Brahmādev perfected the creation of the universe is called padva. When the hoisting of the flag (DharmaDhwaj or Gudhi) was added to the celebrations, this day came to be known as Gudhipadwa.

3. Scriptural view of Gudhipadwa (Chaitra Shukla Pratipadā) : After every cosmic vibration a new universe is created, that day is Gudhipadwa. Initially Earth was entirely covered by water. Then, at the beginning of what we now call summer, the Sun deity started his penance. His radiance increased manifold due to the power of his penance. When the Sun deity finished his penance, one fourth of the water on Earth had been evaporated. The time taken for that is called the summer season now. Thereafter the Sun Deity reverted to his original state i.e. the amount of heat became progressively less. As the water evaporated, it released a number of different gases which formed the atmosphere. Then, on the same day, from the interior of the earth, green land laden with trees and vines, rose up smoothly. Thus, the day on which God Brahmā created the Universe, is known as Gudhipadwa.

4. Significance of the special flag (DharmaDhwaj) : On this day a small round pot is inverted and kept on top of a bamboo stick. This is ritualistically worshipped and hoisted as a flag which is known as the DharmaDhwaj (as shown in the picture). The stick represents the spine and the pot represents the human head. The bamboo also has 'vertebrae,' like the human spine. In the human body, the head, which is of the shape of zero and the spine (vertebral column), are important organs. Another representation is the sperm of a human being which similar to the shape of the number one (1) in Devnagari script. The implied meaning of the components of the flag (DharmaDhwaj)




Flag (DharmaDhwaj)                      Man
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1. The inverted pot                           Head
2. Stick                                                   Part of the body below the neck
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5. The ideal time to hoist the flag (DharmaDhwaj) : On this day the Prajāpati frequencies and absolute fire element (Tējtattva) are active on a large scale. The divine consciousness (Chaitanya) transmitted through these frequencies at the time of sunrise, is long lasting. It is stored in the cells of an individual and is utilized later, as per ones need. Therefore the flag (DharmaDhwaj) should be hoisted and worshipped within 5 to 10 minutes following sunrise.

6. Importance of the substances used for hoisting the flag (DharmaDhwaj)Importance of mango leaves, The proportion of the spiritually pure (Sattva) component is more in mango leaves compared to other leaves and hence they have more capacity to attract the Divine Principle. The mango leaves are tied at the tip of the flag (DharmaDhwaj). Tender mango leaves are recommended rather than fully mature ones as the capacity of the tender leaves to attract divine frequencies is 30% compared to 10% in mature leaves. The absolute fire element principle (Tejtattva) is also more in tender leaves and hence they should be the ones used in ritualistic worship.

Importance of neem leaves, A garland of neem leaves is put around the flag (DharmaDhwaj). Neem represents the frequencies of the spiritually pure component (Sattva). They are next only to mango leaves in attracting the Divine Principle. The Prajāpati frequencies present in the atmosphere are attracted through the tender neem leaves on this day. We receive the Prajāpati frequencies in a subtle form through the medium of neem leaves.

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Tuesday, March 20, 2012

नींव के संस्कार पर इमारतें खड़ी होती हैं, मकान के संस्कार पर घर


पिताजी ने दिल्ली में जमीन खरीदी थी। उस पर मकान बनाना था। दादी ने पूछा- "नींव की पूजा कैसे होगी?" पिताजी बोले-"हवन करवा देंगे। और क्या?" "नहीं रे! मकान की नींव डालने की विशेष पूजा होती है। तभी तो मकान का संस्कार बनता है। संस्कार में भेद के कारण ही एक मकान हंसता तो दूसरा रोता दिखता है।" पिताजी को भी हंसी आ गई। बोले-"मां अब आप मकान का भी हंसना-विसूरना देखने-सुनने लगीं।"

दादी ने पिताजी को नींव की पूजा के बारे में विस्तार से बताने की कोशिश की। उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि वे पिताजी को नींव का मर्म नहीं समझा पाई। वे गांव चली गईं। पंडित लालदेव मिश्र को साथ ले आईं। पंडित जी ने पिताजी को समझाना प्रारंभ कर दिया। वे बोले- "घर, घर है। वह झोपड़ी में हो या फ्लैट में। आलीशान हवेली में हो या बहुमंजिली इमारतों में। कहा और समझा जाता है कि ईंट-कंक्रीट और लोहे की सरिया से बनी दीवारों और छत से घर नहीं बनता। घर तो बनता है घर में रहने वालों के संस्कारों से। "गृहिणी गृहम् उच्यते" भी कहा जाता है। चूंकि हर घर में एक गृहिणी भी होती है, उसके अपने संस्कारों से घर में शांति या कलह विद्यमान होता है। यह ठीक भी है। पर हमारी संस्कृति में मकान का भी संस्कार होता है।" पिताजी के साथ हम सब भी सुनने की स्थिति में आ गए।

"मकान छोटा हो या बड़ा, उसके निर्माण के पूर्व उस स्थान पर नींव डालने की परम्परा है। पूजा पाठ करके नींव डाली जाती है। कहते हैं कि मकान की मजबूती और उसकी आयु उसकी नींव पर निर्भर करती है। कितना और कैसा सीमेंट, बालू और सरिया का इस्तेमाल हुआ है। कितना पानी से तर किया गया है। कितनी धूप लगी है। पर इससे पूर्व नींव में डाली गई सामग्रियों का भी महत्त्व है। वे प्रतीक होती हैं राष्ट्रीय संस्कार की, राष्ट्रीय एकता की। घर को सुखी और संपन्न बनाने के सूत्रों और प्रतीकों के साथ घर की नींव रखी जाती है। घर, मात्र तीन या तीस कमरे का मकान नहीं होता। उसे तो संसार भी कहा जाता है। मकान बनाने के पूर्व जमीन का संस्कार देखा जाता है। उसके संस्कार के निर्णय के बाद ही उस स्थान पर मकान बनाने की राय बनती है। मकान पूर्ण पुरुष होता है। इसलिए जिस प्रकार शिशु के जन्म लेने के पूर्व ही उसके अंदर विभिन्न गुणों के बीजारोपण करने के लिए गर्भ संस्कार किया जाता रहा है, मकान की नींव डालने के समय उसके जन्मकाल में डाले गए संस्कार से ही पूर्ण विकसित पुरुष की कामना की जाती है।" पंडित जी ने समझाया। पिताजी ध्यान से सुन रहे थे। दादी मुस्कुरा रही थीं। उन्हें सुखद लग रहा था कि पण्डित जी की बातें पिताजी के अंतर्मन तक पहुंच रही थीं।

पंडित जी बोले- "हमारे छोटे-छोटे जीवन व्यवहार और संकल्प में जीवन को सुखी बनाने का उपक्रम होता है। मकान निर्माण तो बहुत बड़ा संकल्प है। दीर्घ जीवन का संकल्प। मकान की नींव में कलश, कौड़ी, कछुआ-कछवी, बेमाप का कंकड़, नदी में तैरने वाले सेमाल की टहनी, मेड़ पर उगने वाले कतरे की जड़, सात स्थानों-हथिसार, घोड़सार, गोशाला, गंगा, वेश्या के दरवाजे, चौराहा, देवस्थान की मिट्टी डालने का विधान है। इसमें एक वास्तु पुरुष बनाकर डाला जाता है। सोने-चांदी का नाग। यह वास्तुदोष नाशक यंत्र होता है। हरी मूंग और गुड़ भी डालते हैं।

उपरोक्त सभी वस्तुएं जोड़कर नींव में डाली जाती हैं, उनका प्रतीकात्मक अर्थ है। उस मकान में रहने वालों को सुखी, संपन्न, रोगमुक्त, दीर्घायु और यशस्वी बनाने के प्रतीक हैं। भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सोच भी उसमें समाई होती है।

कौड़ी, पानी के अंदर रहती है। असंख्य थपेड़ों को खाकर भी घिसती नहीं। इस वस्तु को नींव के अंदर रखने का अभिप्राय है कि उस मकान को किसी की नजर न लगे। कछुआ और कछवी की आकृतियां इसलिए कि कछुआ भगवान विष्णु का एक अवतार है। उस मकान को भी कछुआ-कछवी धारण किए रहें। सुपारी और सोना भी विष्णु का ही प्रतीक है। नाग-नागिन की आकृति डालने का अभिप्राय है कि धरती के भीतर विराजमान नाग चक्र उस मकान को संभाले रखे। कंकड़ किसी के उपयोग में न आई मिट्टी का प्रतीक है। नदी के जल पर उगा सेवाल किनारे को पकड़े रहता है। कितना भी झंझावात आए वह बहता नहीं। मकान को झंझावातों से बचाने के लिए सेवाल की डांट रखी जाती है।

मेड़ों पर उगी दूब का वंश कभी समाप्त नहीं होता। इसलिए दूब की जड़ नींव में रखी जाती है। मूंग और कच्चा दूध डाला जाता है। मूंग में औषधीय गुण हैं। प्रतिदिन एक मुट्ठी मूंग खाने से शरीर स्वस्थ्य रहता है। गुड़ तो मीठेपन का प्रतीक है ही। दुग्ध डालने का अभिप्राय यह कि घर में कभी गोरस की कमी न हो। उपरोक्त सारे प्रतीक जीवन को सुखमय और संस्कारी बनाने वाले हैं। इसलिए तो मकान की नींव को ही संस्कारी बनाया जाता है।

पंडित जी ने नींव में डाली जाने वाली सामग्रियों का प्रतीकात्मक अर्थ समझाकर पिताजी अपनी मां की ओर देखा। बोले-"ठीक है, आप इन सारी चीजों को इकट्ठा करवाएं। हम विधि विधान से ही नींव डलवाएंगे। आखिर हम ऐसा ही मकान बनवाना चाहते हैं जिसमें रहने वाले दीर्घायु और सुखी-संपन्न हों।"

दादी बहुत प्रसन्न हो गईं। उनमें से बहुत सी सामग्री पंडित जी ही लाने वाले थे। दादी ने नाग-नागिन और कछुआ-कछवी (धातु के बने) अपने गांव के सुनार से ही बनवाए।

पंडित जी ने बहुत सोच-समझकर तिथि और मुहूर्त निश्चित कर दिया था। वे एक दिन पूर्व ही शहर आ गए। तभी जमीन की साफ-सफाई करवा दी गई थी। गोबर से लिपवाना था। गोबर ढूंढ़ना भी कठिन कार्य था। पर दादी की आज्ञा थी। पिताजी को माननी पड़ी। सुबह से दादी सभी सामान को धो रहीं थीं। पिताजी के लिए एक पीली धोती गांव से ही लाई थीं। पिताजी ने पहन ली। हम लोग जमीन पर पहुंचे। पंडित लालदेव मिश्र समझ गए थे कि पिताजी विस्तार से रस्म की जानकारी चाहते हैं। इसलिए वे नींव डालने की तैयारी करते-करते पिताजी को पूजा की विधि और मर्म समझाते रहे।

पंडित जी पांचों ईंटों में कलेवा लपेट कर रख रहे थे। बोले-"अब हम पूजा प्रारंभ करेंगे।" उन्होंने कलश, कौड़ी, कछुआ-कछवी, बेमाप का कंकड़, सेवाल, दूब की जड़, सात जगहों की मिट्टी और गंगा की दोमट मिट्टी को अंदर गड्ढे में रखा। ईशान कोण से ईशान कोण तक कच्चा दूध गिराया। वैसे ही खैर की लकड़ी की खूंटी रखी। पश्चिम दिशा में कौड़ी और कछुआ-कछवी को कौड़ी के आसपास रखा। कलेवा लपेटी हुई पहली ईंट पूरब दिशा में रखी। बोले-"ओम नन्दा इव नम:"।

सफेद तिल डाला। उत्तर दिशा में दूसरी ईंट - ओम भद्रा इव नम:। तीसरी दक्षिण दिशा में - ओम जया इव नम:। चौथी पश्चिम दिशा में - ओम रिक्ता इव नम:। और पांचवीं बीच में - पूर्णइव नम: उच्चारण के साथ।

उन्होंने शांतिपाठ किया। मिट्टी से नींव को ढंक दिया गया। दादी बहुत प्रसन्न थीं। प्रसन्न तो हम भी थे। पिताजी मुस्कुरा रहे थे। मानो कह रहे हों - "हमारे बीच मां का रहना कितना आवश्यक है। हम तो अब भी बहुत बातों से अनभिज्ञ हैं।"

बात पुरानी हो गई। दादी और पिताजी भी नहीं रहे। उस घर में आज भी सुख-शांति और समृद्धि है। दोनों भाइयों के बीच मेल-मिलाप भी। जब कभी मायके जाती हूं, सुखद लगता है। पंडित जी की बातें स्मरण हो आती है-"नींव के संस्कार पर इमारतें खड़ी होती हैं। मकान के संस्कार पर निर्भर करता है घर का संस्कार।" कितनी गहरी सोच। तभी तो हमारी संस्कृति भी गहरी धंसी है हमारी मिट्टी में।

मृदुला सिन्हा, नींव का संस्कार

Thursday, March 15, 2012

केंद्रीय बजट की सात फीसद राशि सीधे पंचायतों को दी जाये - केएन गोविंदाचार्य



राजनीतिक दलों पर पंचायतों की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए चिंतक और राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक गोविंदाचार्य ने कहा कि संघीय ढांचा तभी मजबूत होगा जब लोकतंत्र के सबसे निचले निकाय को सशक्त बनाया जाएगा.

जंतर- मंतर पर आंदोलन के तत्वावधान में आयोजित धरने को संबोधित करते हुए गोविंदाचार्य ने कहा कि पंचायती राज व्यवस्था पेश किए जाने के बाद से पिछले 20 वर्षो में सभी राजनीतिक दलों ने पंचायतों को पूर्ण अधिकार सम्पन्न बनाने की प्रतिबद्धता को नजरअंदाज किया है.

उन्होंने पंचायतों के सशक्तिकरण, अविरल व निर्मल गंगा, राजनीतिक चुनाव सुधार तथा भ्रष्टाचार एवं कालाधन के विषय पर जागरूकता फैलाने के लिए देशव्यापी अभियान चलाने की भी घोषणा की. गोविंदाचार्य ने कहा कि पंचायतों को केंद्रीय बजट का सात प्रतिशत प्रदान करने की पहल की जानी चाहिए.

केंद्रीय बजट यदि 2.5 लाख करोड़ का है और देश में 2.5 लाख गांव हैं. इस हिसाब से प्रत्येक पंचायत के खाते में 30 लाख रुपए आएंगे. गांवों से बड़े पैमाने पर पलायन के लिए सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं. देश के 5 हजार शहर व 75 हजार गांवों में भारत की 80 करोड़ आबादी रहती है. शेष देश के पिछड़े पांच लाख गांवों में 40 करोड़ लोग रहते हैं.

सरकार पलायन रोकने की बात करती है लेकिन भूमि अधिग्रहण के नाम पर लोगों को उजाड़ रही है. भारत के अलावा दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है जहां सदियों से गांवों में आधारभूत ढांचे का विकास नहीं हुआ है.

उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में निवेश नहीं बढ़ रहा है और खेती के प्रति लोगों की रुचि घटती जा रही है. पिछले 20 वर्षो से यह बात चल रही है कि पंचायतों को वित्तीय अधिकार प्रदान किए जाएं लेकिन यह बात चर्चाओं तक ही सीमित है.

राजनीतिक दल सत्ता पर काबिज होने वाले गिरोह बनकर रह गए हैं. पंचायतों के सशक्तिकरण, अविरल व निर्मल गंगा, राजनीतिक चुनाव सुधार व भ्रष्टाचार एवं कालाधन के विषय पर जागरूकता फैलाने का अभियान चलाया जाएगा.

Monday, March 12, 2012

दाउद इब्राहिम ने नक्सलियों से हाथ मिलाया ?


रायपुर, मार्च 12: पाकिस्तान में रह रहे अपराधी दाउद इब्राहिम की नजर अब भारत के कीमती अयस्क संसाधनों पर है।

दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक दाउद की डी कंपनी छत्तीसगढ़, उड़ीसा और झारखंड में हीरे और टीन के अवैध खनन की योजना बना रही है। इस काम के लिए इन लोगों ने इन राज्यों में कार्यरत नक्सलियों से संपर्क बनाना भी शुरू कर दिया है।

भारत की खुफिया एजेंसियों ने इस बारे में इन राज्यों को एलर्ट जारी किया है और राज्यों से अवैध खनन गतिविधियों के बारे में रिपोर्ट देने की मांग की है। माना जा रहा है कि इब्राहिम ने भारत में अवैध खनन व्यापार में 4,000 करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बनाई है।

विभिन्न अंतरराष्ट्रीय वित्तीय कंपनियों ने इस बात की पुष्टि की है कि दाउद का अवैध व्यापार 12,000 करोड़ रुपए से अधिक है।

केन्द्र सरकार ने पिछले महीने दाउद इब्राहिम की इस महत्वाकांक्षी योजना से संबंधित एक एलर्ट जारी कर राज्य पुलिस बलों को अवगत कराया था। केन्द्र ने छत्तीसगढ़ पुलिस से इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट देने को भी कहा है।

इसी बीच खबर मिली है कि छत्तीसगढ़ में नक्सली रेल के जरिए हथियारों की आवाजाही कर रहे हैं। हाल में पुलिस ने रायपुर स्थित एक ट्रांसपोर्टर के गोदाम में छापा मार कर भारी मात्रा में सामग्री जब्त की थी जिनका इस्तेमाल राकेट लांचर और ग्रेनेड बनाने में किया जाता है।

भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक दी स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (एसआईएमआई) भी दाउद के इस कारोबार में वित्तीय सहयोग दे रही है। यही नहीं लश्कर-ए-तैयबा द्वारा नक्सलियों और डी कंपनी के बीच सहयोग करा कर भारत में आतंक को बढ़ावा देने की भी खबर है।

पिछले महीने दिल्ली में गिरफ्तार किए गए लश्कर-ए-तैयबा के एक नेता ने कबूला है कि लश्कर पिछले तीन सालों से नक्सलियों को हथियार और विस्फोटकों की आपूर्ति कर रहा है।

Saturday, March 10, 2012

संस्कृत बनेगी नासा की भाषा, पढ़ने से गणित और विज्ञान की शिक्षा में आसानी


आगरा [आदर्श नंदन गुप्त]। देवभाषा संस्कृत की गूंज कुछ साल बाद अंतरिक्ष में सुनाई दे सकती है। इसके वैज्ञानिक पहलू का मुरीद हुआ अमेरिका नासा की भाषा बनाने की कसरत में जुटा है। इस प्रोजेक्ट पर भारतीय संस्कृत विद्वानों के इन्कार के बाद अमेरिका अपनी नई पीढ़ी को इस भाषा में पारंगत करने में जुट गया है।


गत दिनों आगरा दौरे पर आए अरविंद फाउंडेशन [इंडियन कल्चर] पांडिचेरी के निदेशक संपदानंद मिश्रा ने 'जागरण' से बातचीत में यह रहस्योद्घाटन किया। उन्होंने बताया कि नासा के वैज्ञानिक रिक ब्रिग्स ने 1985 में भारत से संस्कृत के एक हजार प्रकांड विद्वानों को बुलाया था। उन्हें नासा में नौकरी का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने बताया कि संस्कृत ऐसी प्राकृतिक भाषा है, जिसमें सूत्र के रूप में कंप्यूटर के जरिए कोई भी संदेश कम से कम शब्दों में भेजा जा सकता है। विदेशी उपयोग में अपनी भाषा की मदद देने से उन विद्वानों ने इन्कार कर दिया था।

इसके बाद कई अन्य वैज्ञानिक पहलू समझते हुए अमेरिका ने वहां नर्सरी क्लास से ही बच्चों को संस्कृत की शिक्षा शुरू कर दी है। नासा के 'मिशन संस्कृत' की पुष्टि उसकी वेबसाइट भी करती है। उसमें स्पष्ट लिखा है कि 20 साल से नासा संस्कृत पर काफी पैसा और मेहनत कर चुकी है। साथ ही इसके कंप्यूटर प्रयोग के लिए सर्वश्रेष्ठ भाषा का भी उल्लेख है।

स्पीच थैरेपी भी : वैज्ञानिकों का मानना है कि संस्कृत पढ़ने से गणित और विज्ञान की शिक्षा में आसानी होती है, क्योंकि इसके पढ़ने से मन में एकाग्रता आती है। वर्णमाला भी वैज्ञानिक है। इसके उच्चारण मात्र से ही गले का स्वर स्पष्ट होता है। रचनात्मक और कल्पना शक्ति को बढ़ावा मिलता है। स्मरण शक्ति के लिए भी संस्कृत काफी कारगर है। मिश्रा ने बताया कि कॉल सेंटर में कार्य करने वाले युवक-युवती भी संस्कृत का उच्चारण करके अपनी वाणी को शुद्ध कर रहे हैं। न्यूज रीडर, फिल्म और थिएटर के आर्टिस्ट के लिए यह एक उपचार साबित हो रहा है। अमेरिका में संस्कृत को स्पीच थेरेपी के रूप में स्वीकृति मिल चुकी है।

साभार जागरण

Friday, February 24, 2012

कांग्रेस सहयोगी अजित सिंह की सभा में महिला डांसरों के कपड़े फाड़ उठाने की कोशिश



मेरठ. सरधना से रालोद-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी याकूब कुरैशी के समर्थन में आयोजित एक जनसभा में शर्मसार कर देने वाली घटना घटी। यहां भीड़ जुटाने के लिए आई लेडी डांसरों के साथ जमकर बदसलूकी की गई। उनके कपड़े फाड़ डाले गए। छेड़छाड़ कर उन्हें उठाने की कोशिश की गई। इस सभा रालोद मुखिया एवं केंद्रीय उड्डयन मंत्री चौधरी अजित सिंह ने संबोधित किया।

सूचना मिलने पर पहुंची पुलिस ने लाठियां फटकार कर भीड़ को खदेड़ा। उन्हें कार में बैठा दिया गया लेकिन उत्पाती युवकों ने कार को पुलिस की मौजूदगी में घेर लिया। पुलिस किसी तरह लोगों की मदद से कार को धक्के देकर सभा स्थल से कुछ दूर ले आई। वहां पर एक व्यापारी के आवास में पहुंचकर डांसरों ने फटे कपड़े बदले और राहत की सांस ली।

जानकारी के मुताबिक, कलाकार निशा चौधरी, आरसी उपाध्याय, वर्षा चौधरी और मानसी मंच पर डांस कर रही थीं। उसी समय कुछ लड़के उनको देख उत्तेजित हो गए। लड़कों ने डांसरों को खींचने का प्रयास किया। उनके कपड़े फाड़ कर उठाने की कोशिश की।

कांग्रेस प्रत्याशी ने चुनावी सभा में अभिनेत्री नगमा से बदसलूकी (पढने के लिए क्लिक करें) को एक ही दिन हुआ था, कि आज प्रदेश में यह हंगामा हो गया, जैसा कि ज्ञात है कि नगमा ने प्रत्याशी से कहा कि यह क्या बदतमीजी है लेकिन हुसैन अंसारी तो अपनी ही मस्ती में मस्त थे। लिहाजा उन्होंने भी अपना बयान जारी रखा लेकिन इस सारी बयानबाजी के बीच नगमा बेचारी झेंप कर रह गई।

प्रदेश में कांग्रेस-रालोद की सरकार हो तो और क्या क्या हो सकता है - सोचिये जरा ?

Saturday, February 18, 2012

डा. स्वामी की भ्रष्टाचार विरोधी समिति, एक परिचय

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अनुभवी और जुझारू लोगो का समूह है सुब्रमण्यम स्वामी जी का संगठन (ACACI) Action Committee against Corruption of India के सदस्यों के तौर पर ऐसे व्यक्तियों को शामिल किया गया है जिनके अनुभव और जुझारूपन का पूरे देश में लोहा माना जाता है आइये एक नज़र डालते है इन अनुभवी सदस्यों के संक्षिप्त परिचय पर ...

डॉ सुब्रमण्यम स्वामी : जनता पार्टी के अध्यक्ष डॉ सुब्रमण्यम स्वामी इस नए संगठन के अध्यक्ष हैं| भारत में प्रख्यात अर्थशास्त्री के रूप में प्रसिद्ध डॉ स्वामी पूर्व केंद्रीय कानून एवं वाणिज्य मंत्री, पांच बार सांसद, योजना आयोग के सदस्य एवं हार्वर्ड में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर रह चुके है| इन्होने भारत-चीन, भारत-पाकिस्तान और भारत-इजरायल संबंधो पर गहन अध्ययन किया है| डॉ. स्वामी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने में हमेशा से अग्रसर रहे है|

के. एन. गोविन्दाचार्य : राजनितिक विचारक और समाजसेवी गोविन्दाचार्य वर्तमान समय में राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन, भारत विकास संगम और कौटिलय शोध संस्थान के संरक्षक हैं| इन्होने राजनितिक, समाज, अर्थव्यवस्था और संस्कृति पर वैश्वीकरण के प्रभाव का गहन अध्ययन किया है| गोविन्दाचार्य जी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन ने २००८ में विदेशो में जमा काले धन को लेकर देशव्यापी आन्दोलन किया था|

एस. गुरुमूर्ति : पेशे से चार्टेड एकाउंटेंट स्वामीनाथन गुरुमूर्ति, भारत के प्रसिद्ध पत्रकार एवं कारपोरेट सलाहकार है| खोजी पत्रकारिता के लिए प्रसिद्ध गुरुमूर्ति ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाते हुए, बोफोर्स घोटाले और सरकार व कारपोरेट जगत के बीच सांठगांठ पर से पर्दा उठाया| इन्हें १९९० में ‘जेंटलमेन’ पत्रिका द्वारा भारत के ५० सबसे अधिक शक्तिशाली व्यक्तियों की सूची में शामिल किया था| वहीं २००४ मे ‘बिजनेस बैरन” द्वारा जारी सबसे अधिक शक्तिशाली व्यक्तियों की सूची मे ८वां स्थान मिला|

अजित डोभाल : भारत के प्रसिद्ध आईपीएस अधिकारी अजित कुमार डोभाल ख़ुफ़िया ब्यूरो के पूर्व निदेशक रह चुके है| कीर्ति चक्र से सम्मानित होने वाले वे भारत के पहले पुलिस अधिकारी है| इन्होने लन्दन और पाकिस्तान मे भी कार्य किया है| विद्रोह की स्थिति से निपटने मे विशेषज्ञ डोभाल जी भारतीय नीतिकारों और सरकारी एजेंसियों के सलाहकार रह चुके है| सरकारी सेवा से निवृत्त होने के बाद अब डोभाल जी विवेकानंद अंतरराष्ट्रीय संस्था का संचालन कर रहे है|

प्रो. माधव दास नलपत : मुंबई विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र मेन गोल्ड मेडलिस्ट प्रो. माधव दास वर्त्तमान मे मणिपाल विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ जियोपोलिटिक्स के निदेशक है| प्रो. माधव दास ने १९८३ में भारत-चीन-रूस गठबंधन, १९९२ में वहाबिजम् से खतरा, १९९५ में हिंदू, मुस्लिम व ईसाइयों की एकता के रूप मे ‘इन्दुत्व’, १९९९ में प्रोक्सी न्यूकिलयर स्टेट, २००२ में ‘एशियन नाटो’ की अवधारणा से देश को अवगत कराया|

डॉ. आर. वैधनाथन : डॉ. आर. वैधनाथन आईआईऍम बेंगलुरु में फाइनेंस के प्रोफ़ेसर है| डॉ. वैधनाथन जी पूंजी पर टेक्निकल सलाहकार समिति, विदेशी विनिमय एवं सरकारी प्रतिभूति बाज़ार और रिजर्व बैंक की भारतीय अर्थव्यवस्था पर सलाहकार समिति के सदस्य रह चुके है| विदेशो में जमा काले धन लगभग एक दशक से गहन अध्ययनशील है और धन वापिसी की रूप रेखा पर कार्यरत है|

ए. सूर्य प्रकाश : भारत के प्रख्यात पत्रकार ए. सूर्य प्रकाश भारतीय राजनीति, संबैधानिक व संसदीय मुद्दों के टिपण्णीकार रहे है| ए. सूर्य प्रकाश जी ने “What Else India Parliament’ नाम से एक पुस्तक भी लिखी है और विवेकानंद अंतरराष्ट्रीय संस्था के वरिष्ठ सदस्य है|

डॉ. एस. कल्याणरमण : डॉ. एस. कल्याणरमण सरस्वती रिसर्च सेंटर के निदेशक, रामसेतु रक्षा आन्दोलन के अध्यक्ष और वर्ल्ड एसोसिएशन फॉर वैदिक स्टडीज के निदेशक मंडल के सदस्य है| यूनीवर्सिटी ऑफ द फिलीपींस से लोक प्रशासन मेन पीएचडी करने वाले डॉ. कल्याणरमण एशियन डेवलेपमेंट बैंक के वरिष्ठ और भारतीय रेलवे में आर्थिक सलाहकार रह चुके है|

वी. सुंदरम : सेवानिवृत्त आई.ए.एस अधिकारी वी. सुंदरम ने तमिलनाडु सरकार में विभिन्न पदों पर कार्य किया है और वर्त्तमान में जनता पार्टी के अखिल भारतीय महासचिव के तौर पर कार्य कर रहे है|

एम. आर. वेंकटेश : चार्टेड एकाउंटेंट एम. आर. वेंकटेश अर्थशास्त्र की नीतियों, अंतरराष्ट्रीय व्यापार और व्यावसायिक नीतियों के विशेषज्ञ है| “Global Imbalances And The Impending Dolor Crisis” और “ Sens, Sensex and Sentiments” पुस्तकों के लेखक वेंकटेश ने काले धन के मुद्दे पर सतत आन्दोलन में पूर्ण भागीदरी और रूपरेखा की जिम्मेदारी निभाई है|

जे. गोपीकृष्ण : पायनियर के विशेष संवाददाता गोपीकृष्ण ने ही २जी स्पेक्ट्रम मामले को प्रकाश में लाया था और साथ ही नीरा राडिया प्रकरण पर से भी पर्दा उठाया था|

के. संपत आयंगर : प्रख्यात आयकर वकील और चार्टेड एकाउंटेंट आयंगर कारपोरेट फाइनेंस, करप्रणाली और बजटीय नियंत्रण के विशेषज्ञ है| वह कई भारतीय कारपोरेट घरानों के लेखा परीक्षक और सलाहकार रहे है|

सरजू राय : झारखण्ड और बिहार में सामाजिक-राजनितिक क्षेत्र में सरजू राय काफी प्रसिद्ध है| वे बिहार विधान परिषद और झारखण्ड विधान परिषद के सदस्य रह चुके है| इन्होने चारा घोटाले, मधु कोड़ा खान घोटाले और बड़ोदा बैंक घोटाले को उजागर किया है| इनके प्रयासों से कोई भ्रष्ट राजनेता जेल की हवा खा चुके है|

अभिषेक जोशी : ACACI के सचिव के रूप मेन कार्यरत अभिषेक पेशे से प्रबंधन सलाहकार है| सामाजिक- राजनितिक कार्यकर्ता के रूप में अभिषेक जोशी ने कम समय में ही अपनी एक अलग पहचान बनाई है| इन्होने अंतरराष्ट्रीय कानून, संबैधानिक व राजनितिक सुधार, प्रशासन का विकेन्द्रीयकरण, भू-राजनितिक रणनीति और विदेशनीति का गहन अध्ययन किया है|

Tuesday, September 20, 2011

कब तक सरकार देश के शहीदों का अपमान करती रहेगी ? — आई.बी.टी.एल विशेष


वैसे भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, चन्द्र शेखर आज़ाद का अपमान तो ये सरकार पिछले ६४ सालो से करती आ रही है... और २६ नवम्बर २००८ के मुंबई हमलो के अमर शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन को भी सम्मान न दे सकी, उनके चाचा ने सरकार से शहीदों को सम्मान दिलाने के लाखों प्रयासों के बाद भी निराश ही हाथ लगी एवं उन्होंने ०४ फरवरी २०११ को संसद भवन के बाहर आत्मदाह कर लिया
अपमान किया बाटला हाउस में शहीद हुए मोहनचंद शर्मा का, शहीद शर्मा वही जाबांज पुलिस अफसर हैं जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर बाटला हाउस में अपनी बहादुर टीम के साथ आतंकवादियो पर हमला किया था| ये वो खूंखार आतंकवादी थे जिन्होंने दिल्ली में सीरियल बम ब्लास्ट किए थे और भारी तबाही मचाई थी.
वही दूसरी ओर जब इन आतंकवादियो को मारा गिराया अन्य साथियो को गिरफ्तार किया गया तो इन आतंकियों से मिली जानकारी एवं दस्तावेजों के आधार पर गुजरात, मुंबई, दिल्ली में जितनी भी आतंकी घटनाएं हुई उनमें शामिल अपराधियों तक तक पहुंचा जा सका| उनके गुप्त ठिकानों की जानकारी मिली एवं विभिन क्षेत्रों से अनेकों आतंकियों की गिरफ्तारी संभव हुई| अगर एक तरह से कहा जाए तो शहीद मोहनचंद शर्मा जी ने अपना बलिदान देकर देश में पनप रहे इस्लामिक आतंकवाद की कमर तोड़ कर रख दी थी| लेकिन शहीद मोहनचंद शर्मा जी के बलिदान पर राष्ट्रविरोधी तत्वों द्वारा हमेशा से उंगलिया उठती रही है, कभी तो एनकाउंटर को फर्जी करार दिया गया तो कभी मारे गये और गिरफ्तार हुए आतंकवादियो को मासूम और बेगुनाह बच्चे बता कर शहीद की शहादत का अपमान किया गया|
बार-बार राष्ट्र द्रोहियो द्वारा मोहनचंद शर्मा जी की शहादत का अपमान किया गया, कभी जामिया के वाइस चांसलर द्वारा, तो कभी वहां के लोगों ने दिल्ली पुलिस की राष्ट्रवादी कार्यप्रणाली पर भी उंगलिया उठाई|
कल १९ सितम्बर को उनके बलिदान की तीसरी पुण्यतिथि पर राष्ट्रवादी संघठनो ने एक जुट हो कर उनको श्रदांजलि अर्पित करने का कार्यक्रम रखा था... वहां उपस्तिथ पुलिस ने पूर्ण समर्थन दिया, कार्यक्रम के अनुसार होली फॅमिली हॉस्पिटल से बाटला हाउस तक मार्च निकालना था... जिसे पुलिस ने समुदाय विशेष के विरोध के कारण हॉस्पिटल के चौक तक ही रोक दिया... राष्ट्रवादियों ने उस चौक का नामकरण शहीद मोहनचंद शर्मा जी के नाम पर किया परन्तु राष्ट्रवादियों के वहाँ से हटते ही पुलिस ने समुदाय विशेष के दवाब में शहीद मोहनचंद शर्मा जी का नाम हटा दिया|
बाद में पुलिस ने वहाँ कागज़ पर नाम लिखने का सुझाव दिया ओर MCD का बहाना देने लगी... राष्ट्रभक्तो ने बोर्ड पर शहीद मोहनचंद शर्मा जी का नाम कागज़ पर लिख कर लगा दिया और जब वहा पुन: नाम लिखने की कोशिश की गयी तो पुलिस ने सभो को गिरफ्तार कर लिया
श्रदांजलि में सम्मलित संघठनो "भगत सिंह क्रांति सेना", "प्रत्यंचा", "हिन्दू संघर्ष समिति" ने MCD में इसकी लिखित जानकारी दी है और उस चौक का नाम शहीद मोहनचंद शर्मा जी के नाम पर रखने की मांग की है पर क्या आज़ाद भारत में एक शहीद का नाम लिखने के लिए किसी अनुमति की जरुरत होना चाहिए, वहीँ दूसरी ओर अरुंधती राय, गिलानी जैसे लोग पुलिस सुरक्षा में देश को खंडित करने का संकल्प लेते है और देश को टुकडो में बाटने के लिए सेमिनार करते हैं
- तरुण अग्रवाल (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार है)