Friday, October 29, 2010
Thursday, October 28, 2010
भगत सिंह का फांसी से पहले अपने दोस्तों को आखिरी भावुक कर देने वाला पत्र
भगत सिंह का फांसी से पहले अपने दोस्तों को आखिरी भावुक कर देने वाला पत्र..
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता। मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है- इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता। आज मेरी कमजोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए।
लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगतसिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी। हाँ, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं, उनका हजारवाँ भाग भी पूरा नहीं कर सका। अगर स्वतंत्र, जिंदा रह सकता, तब शायद उन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता। इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फाँकसी से बचने का नहीं आया। मुझसे अधिक भाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है। कामना है कि यह और नजदीक हो जाए।
आपका साथी - भगतसिंह
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता। मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है- इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता। आज मेरी कमजोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए।
लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगतसिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी। हाँ, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं, उनका हजारवाँ भाग भी पूरा नहीं कर सका। अगर स्वतंत्र, जिंदा रह सकता, तब शायद उन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता। इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फाँकसी से बचने का नहीं आया। मुझसे अधिक भाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है। कामना है कि यह और नजदीक हो जाए।
आपका साथी - भगतसिंह
Wednesday, October 27, 2010
भागरत सिंह के पत्रों के अंश !
भगतसिंह के पत्र से
क्रांतिकारी न्याय के लिए लड़ते हैं अन्याय के लिए बल प्रयोग नहीं करते है। क्रांतिकारी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अपनी शारीरिक एवं नैतिक शक्ति दोनों के प्रयोग में विश्वास करता है। इसलिए अब सवाल यह नहीं है कि आप हिंसा चाहते है या अहिंसा? बल्कि सवाल तो यह है कि आप अपने उद्देश्य प्राप्ति के लिए शारीरिक बल सहित नैतिक बल का प्रयोग करना चाहते है या केवल आत्मिक शक्ति का?
क्रांति पूंजीवाद, वर्गवाद तथा कुछ लोगों को ही विशेषाधिकार दिलाने वाली प्रणाली का अंत कर देंगी। यह राष्ट्र को अपने पैरों पर खडा करेगी, उससे नवीन राष्ट्र और नये समाज का जन्म होगा। क्रांति से सबसे बड़ी बात तो यह होगी कि वह मजदूर तथा किसानों का राज कायम कर उन सब सामाजिक अवांछित तत्वों को समाप्त कर देगी जो राजनीतिक शक्ति को हथियार मान बैठे है। आतंकवाद क्रांति नहीं है। क्रांति का एक आवश्यक और अवश्यंभावी अंग है। आतंकवाद आम जन के मन में भय पैदा करता है और पीडि़त जनता में प्रतिशोध की भावना जागृत करके उन्हे शक्ति प्रदान करता है। क्रांति के लिए खूनी संघर्ष अनिवार्य नहीं है और न ही उसमे व्यक्तिगत प्रतिङ्क्षहसा के लिए कोई स्थान है वह बम और पिस्तौल का संप्रदाय नहीं है। क्रांति से हमारा अभिप्राय है- अन्याय पर आधारित मौजूद समाज व्यवस्था में आमूल परिवर्तन। इंकलाब जिंदाबाद
क्रांतिकारी न्याय के लिए लड़ते हैं अन्याय के लिए बल प्रयोग नहीं करते है। क्रांतिकारी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अपनी शारीरिक एवं नैतिक शक्ति दोनों के प्रयोग में विश्वास करता है। इसलिए अब सवाल यह नहीं है कि आप हिंसा चाहते है या अहिंसा? बल्कि सवाल तो यह है कि आप अपने उद्देश्य प्राप्ति के लिए शारीरिक बल सहित नैतिक बल का प्रयोग करना चाहते है या केवल आत्मिक शक्ति का?
क्रांति पूंजीवाद, वर्गवाद तथा कुछ लोगों को ही विशेषाधिकार दिलाने वाली प्रणाली का अंत कर देंगी। यह राष्ट्र को अपने पैरों पर खडा करेगी, उससे नवीन राष्ट्र और नये समाज का जन्म होगा। क्रांति से सबसे बड़ी बात तो यह होगी कि वह मजदूर तथा किसानों का राज कायम कर उन सब सामाजिक अवांछित तत्वों को समाप्त कर देगी जो राजनीतिक शक्ति को हथियार मान बैठे है। आतंकवाद क्रांति नहीं है। क्रांति का एक आवश्यक और अवश्यंभावी अंग है। आतंकवाद आम जन के मन में भय पैदा करता है और पीडि़त जनता में प्रतिशोध की भावना जागृत करके उन्हे शक्ति प्रदान करता है। क्रांति के लिए खूनी संघर्ष अनिवार्य नहीं है और न ही उसमे व्यक्तिगत प्रतिङ्क्षहसा के लिए कोई स्थान है वह बम और पिस्तौल का संप्रदाय नहीं है। क्रांति से हमारा अभिप्राय है- अन्याय पर आधारित मौजूद समाज व्यवस्था में आमूल परिवर्तन। इंकलाब जिंदाबाद
Monday, October 25, 2010
Sunday, October 24, 2010
Friday, October 22, 2010
दलाल या पत्रकार ?
मीडिया में किसी पक्ष विशेष की चाटुकारिता या दलाली ने किस कदर पैर पसार लिए है, उसका उदाहरण तो सबके सामने है ही | हम सब देखते है की किसी ख़ास पार्टी या सम्प्रदाय के खिलाफ हमारे समाचार चैनल बोलते रहते है, इन लोगों को सिर्फ कट्टरता आर.एस.एस में दिखाई देती है, लेकिन इंडियन मुजाहिद्दीन और गिलानी जैसे देश द्रोहियों का समर्थन करने वाले लोग दिखाई नहीं देते है | कल की ही घटना को ले लीजिये, गिलानी का विरोध करने वाले लोग अचानक आक्रामक नहीं हुए, वो आक्रामक इसलिए हुए क्योकि गिलानी के समर्थन ने हिन्दुस्तान मुर्दाबाद और कश्मीर को आज़ादी दो के नारे लगाये, तब जाकर कुछ ये हंगामा बरपा | आप बताइए की क्या गलती की हमारे भाइयों ने हंगामा कर, क्या ये उचित था की हम हिन्दुस्तान मुर्दाबाद के नारे सुनते रहे और उन देशद्रोहियों को दयनीय की तरह देखते रहे, और मीडिया में एक खबर ऐसी नहीं आई जिसमे कहा गया हो की इन देश विरोधी ताकतों ने हिन्दुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाये, बस इतना बताया की कुछ ए.वी.बी.पी के कार्यकर्ताओं ने कार्यक्रम को होने नहीं दिया और हंगामा मचाया | इस प्रकार की खबरे दिखाने में सबसे आगे पागलों की तरह बेतहाशा भाग रहा है, एन.डी.टी.वी- इंडिया | आज इसी चैनल की एक पत्रकार की बात करते है नाम है बरखा दत्त | नाम तो काफी प्रख्यात है ही इनका लेकिन मैं ने आज तक इनका नाम किसी अच्छे काम के लिए है सुना, आप यकीन नहीं मानेंगे ? लेकिन मैं इसके सबूत दूंगा | एक और काम ये करती है, इस्लाम का प्रचार लेकिन उसे ये एक अलग नज़र से देखती है, या ये कह लीजिये की ये उनके उत्थान की बातें करती है | लेकिन ऐसा क्या उत्थान जो दिन भर दिखाया जाए क्या कोई धर्म इतना कमजोर है जिसका प्रचार या उनका पक्ष दिखाना आवश्यक है, और वो धर्म जो विश्व में दूसरे नंबर पर है, और काफी सम्रद्ध है संस्कृति के मामले में | खैर बात को केंद्र बिंदु में रखे तो सही होगा | हम बात कर रहे थे बरखा जी की आज बताते है कुछ ऐसे बिंदु जो उनके बारे में खासे प्रचिलित है |
1. बरखा दत्त विख्यात हुई कारगिल की युद्ध से, जहां उन्होंने एक कवरेज करी युद्ध पर, जो कठिन थी, और वो महिला करे तो और भी कठिन | लेकिन शायद कम लोगो को पता है की बरखा जी को आदेश मिला था सेना की ओर से की आप लाइव कवरेज न दे लेकिन उहोने किया जिसका परिणाम ये हुआ की कि एडमिरल सुरेश मेहता ने बरखा को कारगिल युद्ध के दौरान तीन जवानों की हत्या का दोषी माना था
जिसमे बरखा की लाइव कवरेज के दौरान बताये गए लोकेशन को ट्रेस कर पाकिस्तान ने तीन भारतीय जवानों को मार गिराया था | जबकि उन्हें ऐसा करने से मोर्चे पर मौजूद सैनिकों ने बार बार रोका था
हैरानी ये कि उस वक़्त रक्षा मंत्रालय के जबरदस्त विरोध के बावजूद बरखा के खिलाफ कोई वैधानिक कार्यवाही नहीं की जा सकी थी |
2. ए. रजा (टेलिकॉम मंत्री) ये इसलिए चर्चा में नहीं है की ये मंत्री है इसलिए चर्चा में इसलिए है क्योकि इन्होने साथ हज़ार करोड़ का घोटाला किया, और बरखा दत्त का नाम इसलिए यहाँ शामिल है क्योकि वीर संघवी और बरखा ने मिल कर राजा के सिफारिश की थी सरकार से, क्योकि इनके इनसे मधुर सम्बन्ध है | वैसे सिफारिश करने का कोई अधिकार नहीं है इनके पास लेकिन बड़े नेताओं से जानकारी, अच्छी उठ बैठ और पत्रकार होने का रौब था | अब आप देखिये की किस प्रकार ले आदमी की सिफारिश की इन्होने |
3. मुंबई में हुए २६/११ के हमले में की गयी इनकी कवरेज इतनी बकवास थी, नहीं नहीं ये मेरा मत नहीं है सब कह रहे थे पत्रकारिता के विशेषज्ञ, और बात करू अपनी तो मुझे लगा नहीं एक सीनियर पत्रकार बोल रही है लग रहा था एक नौसिखिया पत्रकार बोल रहा है, वो भी बेतरतीब ढंग से | सच कहूँ मुझे शर्म आ रही थी वो रिपोर्ट देखते हुए | और उनकी रिपोर्ट पर बवाल इसलिए भी मचा की उन्होंने पुलिस की कर्मठता पर सवाल उठाया था | लाइव कवरेज में बरखा एक बेहद फटेहाल व्यक्ति से पूछती हैं कहाँ है तुम्हारी पत्नी मार दी गयी तो क्या बंधक नहीं बना रखा है उसे ? जी नहीं वो वहां छुपी है उस जगह |दूसरा दृश्य लगभग ४ घंटे के आपरेशन के बाद जैसे ही सेना का एक जनरल बाहर निकल कर आते है और खबर देते है कि और कोई बंधक ओबेराय में नहीं है बरखा कि ओर से एक और ब्रेकिंग न्यूज फ्लेश होती है अभी भी ओबेराय में १०० से अधिक बंधक मौजूद है | अब आप सोच सकते है की क्या स्तर है इनकी पत्रकारिता का |
4. सभी को बोलने का अधिकार है, यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लेकिन जब नीदरलैंड के एक अप्रवासी भारतीय चैतन्य कुंटे ने २६/११ के दौरान अपने ब्लॉग पर बरखा की इस पत्रकारिता पर सवाल खड़े किये तो बरखा और एन डी टी वी इंडिया ने पहले तो चैतन्य से माफ़ी मांगने को कहा और फिर उसके खिलाफ मुक़दमे की कार्यवाही शुरू कर दी| क्या अभिव्यक्ति का अधिकार सिर्फ बरखा या एन.डी.टी वी को है, और सच को आप कैसे भी कानूनी कार्यवाही से कैसे दबा सकते है ?
ऐसे ही एक फेसबुक में ‘Can you please take Barkha off air’ नामक ग्रुप चलने वाली निवेदिता दास कहती हैं “बरखा दत्त में,मे उस एक अति महत्वकांक्षी महिला को देखती हो जो खबरों की कवरेज के समय खुद को यूँ ब्लो उप करती है जैसे ये खबर ऑस्कर के लिए चुनी जाने वाली है ,जब लोग डरे सहमे और मौत के बीच रहते हैं उस वक्त का वो अपने और अपने चैनल के लिए उनके उनकी भावनाओ को बखूबी इस्तेमाल करना जानती है, जब वो ख़बरों की कवरेज नहीं कर रही होती है तब भी उसमे वही अति महत्वाकांक्षी महिला साँसे लेती रही थी ,जिसका सबूत इस एक घोटाले से सामने आया है | जो स्पेक्ट्रम घोटाला था जिसमे वीर संघवी, बरखा दत्त और नीरा राडिया जैसी सत्ता के दलाल सामिल थे |
1. बरखा दत्त विख्यात हुई कारगिल की युद्ध से, जहां उन्होंने एक कवरेज करी युद्ध पर, जो कठिन थी, और वो महिला करे तो और भी कठिन | लेकिन शायद कम लोगो को पता है की बरखा जी को आदेश मिला था सेना की ओर से की आप लाइव कवरेज न दे लेकिन उहोने किया जिसका परिणाम ये हुआ की कि एडमिरल सुरेश मेहता ने बरखा को कारगिल युद्ध के दौरान तीन जवानों की हत्या का दोषी माना था
जिसमे बरखा की लाइव कवरेज के दौरान बताये गए लोकेशन को ट्रेस कर पाकिस्तान ने तीन भारतीय जवानों को मार गिराया था | जबकि उन्हें ऐसा करने से मोर्चे पर मौजूद सैनिकों ने बार बार रोका था
हैरानी ये कि उस वक़्त रक्षा मंत्रालय के जबरदस्त विरोध के बावजूद बरखा के खिलाफ कोई वैधानिक कार्यवाही नहीं की जा सकी थी |
2. ए. रजा (टेलिकॉम मंत्री) ये इसलिए चर्चा में नहीं है की ये मंत्री है इसलिए चर्चा में इसलिए है क्योकि इन्होने साथ हज़ार करोड़ का घोटाला किया, और बरखा दत्त का नाम इसलिए यहाँ शामिल है क्योकि वीर संघवी और बरखा ने मिल कर राजा के सिफारिश की थी सरकार से, क्योकि इनके इनसे मधुर सम्बन्ध है | वैसे सिफारिश करने का कोई अधिकार नहीं है इनके पास लेकिन बड़े नेताओं से जानकारी, अच्छी उठ बैठ और पत्रकार होने का रौब था | अब आप देखिये की किस प्रकार ले आदमी की सिफारिश की इन्होने |
3. मुंबई में हुए २६/११ के हमले में की गयी इनकी कवरेज इतनी बकवास थी, नहीं नहीं ये मेरा मत नहीं है सब कह रहे थे पत्रकारिता के विशेषज्ञ, और बात करू अपनी तो मुझे लगा नहीं एक सीनियर पत्रकार बोल रही है लग रहा था एक नौसिखिया पत्रकार बोल रहा है, वो भी बेतरतीब ढंग से | सच कहूँ मुझे शर्म आ रही थी वो रिपोर्ट देखते हुए | और उनकी रिपोर्ट पर बवाल इसलिए भी मचा की उन्होंने पुलिस की कर्मठता पर सवाल उठाया था | लाइव कवरेज में बरखा एक बेहद फटेहाल व्यक्ति से पूछती हैं कहाँ है तुम्हारी पत्नी मार दी गयी तो क्या बंधक नहीं बना रखा है उसे ? जी नहीं वो वहां छुपी है उस जगह |दूसरा दृश्य लगभग ४ घंटे के आपरेशन के बाद जैसे ही सेना का एक जनरल बाहर निकल कर आते है और खबर देते है कि और कोई बंधक ओबेराय में नहीं है बरखा कि ओर से एक और ब्रेकिंग न्यूज फ्लेश होती है अभी भी ओबेराय में १०० से अधिक बंधक मौजूद है | अब आप सोच सकते है की क्या स्तर है इनकी पत्रकारिता का |
4. सभी को बोलने का अधिकार है, यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लेकिन जब नीदरलैंड के एक अप्रवासी भारतीय चैतन्य कुंटे ने २६/११ के दौरान अपने ब्लॉग पर बरखा की इस पत्रकारिता पर सवाल खड़े किये तो बरखा और एन डी टी वी इंडिया ने पहले तो चैतन्य से माफ़ी मांगने को कहा और फिर उसके खिलाफ मुक़दमे की कार्यवाही शुरू कर दी| क्या अभिव्यक्ति का अधिकार सिर्फ बरखा या एन.डी.टी वी को है, और सच को आप कैसे भी कानूनी कार्यवाही से कैसे दबा सकते है ?
ऐसे ही एक फेसबुक में ‘Can you please take Barkha off air’ नामक ग्रुप चलने वाली निवेदिता दास कहती हैं “बरखा दत्त में,मे उस एक अति महत्वकांक्षी महिला को देखती हो जो खबरों की कवरेज के समय खुद को यूँ ब्लो उप करती है जैसे ये खबर ऑस्कर के लिए चुनी जाने वाली है ,जब लोग डरे सहमे और मौत के बीच रहते हैं उस वक्त का वो अपने और अपने चैनल के लिए उनके उनकी भावनाओ को बखूबी इस्तेमाल करना जानती है, जब वो ख़बरों की कवरेज नहीं कर रही होती है तब भी उसमे वही अति महत्वाकांक्षी महिला साँसे लेती रही थी ,जिसका सबूत इस एक घोटाले से सामने आया है | जो स्पेक्ट्रम घोटाला था जिसमे वीर संघवी, बरखा दत्त और नीरा राडिया जैसी सत्ता के दलाल सामिल थे |
Thursday, October 21, 2010
Wednesday, October 20, 2010
सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस संस्थान के संस्थापक ...
डॉ बिन्देश्वरी पाठक (फाउंडर "सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस संस्थान")
इन्हें आज तक भारत रत्न आज तक इसलिये नहीं मिला कि इन्होने माँगा ही नहीं हर साल भारत रत्न मिलने वालों के नाम के लिये भा.ज.पा अटल बिहारी वाजपेयी, बसपा स्व. काँशी राम जी, और भी ईसी तरह के राजनैतिक नाम या खिलाडी या अभिनेता इन लोगों के नाम ही अधिकतर उछलते हैं |
जो लोग समाज के बीच रहकर समाज के लिये कुछ करते हैं उन्हें पदम भूषण जैसी उपाधी (जो कि सैफ अली खान को भी मिली है) दे कर पीछे हट गयेमेरे सभी पत्रकार मित्रों से मैं कहना चाहूँगा जरा कुछ ऐे लोगों के बारे में लिखें आम आदमी को भी इन लोगों से परिचित करवायें इन्हे उचित सम्मान दिलवायें ताकि ऐसे लोग और प्रोतसाहित हों |
डॉ बिन्देश्वरी पाठक (जन्म: ०२ अप्रैल, १९४३) विश्वविख्यात भारतीय समाजशास्त्री एवं उद्यमी हैं। उन्होने सन १९७० मे सुलभ इन्टरनेशनल की स्थापना की। उन्होने अपने कार्यों के लिये भारत एवं विश्व के कई प्रतिष्टित पुरस्कार प्राप्त किये।
डॉ बिन्देश्वर को भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया है। उन्होने इनर्जी ग्लोब पुरस्कार, पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने के लिये प्रियदर्शिनी पुरस्कार एवं सर्वोत्तम कार्यप्रणाली (बेस्ट प्रक्टिसेस) के लिये दुबई अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किया है।अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा संगठन (आईआरईओ) का अक्षय उर्जा पुरस्कार (सन् २००९)
इन्हें आज तक भारत रत्न आज तक इसलिये नहीं मिला कि इन्होने माँगा ही नहीं हर साल भारत रत्न मिलने वालों के नाम के लिये भा.ज.पा अटल बिहारी वाजपेयी, बसपा स्व. काँशी राम जी, और भी ईसी तरह के राजनैतिक नाम या खिलाडी या अभिनेता इन लोगों के नाम ही अधिकतर उछलते हैं |
जो लोग समाज के बीच रहकर समाज के लिये कुछ करते हैं उन्हें पदम भूषण जैसी उपाधी (जो कि सैफ अली खान को भी मिली है) दे कर पीछे हट गयेमेरे सभी पत्रकार मित्रों से मैं कहना चाहूँगा जरा कुछ ऐे लोगों के बारे में लिखें आम आदमी को भी इन लोगों से परिचित करवायेंइन्हे उचित सम्मान दिलवायें ताकि ऐसे लोग और प्रोतसाहित हों
इन्हें आज तक भारत रत्न आज तक इसलिये नहीं मिला कि इन्होने माँगा ही नहीं हर साल भारत रत्न मिलने वालों के नाम के लिये भा.ज.पा अटल बिहारी वाजपेयी, बसपा स्व. काँशी राम जी, और भी ईसी तरह के राजनैतिक नाम या खिलाडी या अभिनेता इन लोगों के नाम ही अधिकतर उछलते हैं |
जो लोग समाज के बीच रहकर समाज के लिये कुछ करते हैं उन्हें पदम भूषण जैसी उपाधी (जो कि सैफ अली खान को भी मिली है) दे कर पीछे हट गयेमेरे सभी पत्रकार मित्रों से मैं कहना चाहूँगा जरा कुछ ऐे लोगों के बारे में लिखें आम आदमी को भी इन लोगों से परिचित करवायें इन्हे उचित सम्मान दिलवायें ताकि ऐसे लोग और प्रोतसाहित हों |
डॉ बिन्देश्वरी पाठक (जन्म: ०२ अप्रैल, १९४३) विश्वविख्यात भारतीय समाजशास्त्री एवं उद्यमी हैं। उन्होने सन १९७० मे सुलभ इन्टरनेशनल की स्थापना की। उन्होने अपने कार्यों के लिये भारत एवं विश्व के कई प्रतिष्टित पुरस्कार प्राप्त किये।
डॉ बिन्देश्वर को भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया है। उन्होने इनर्जी ग्लोब पुरस्कार, पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने के लिये प्रियदर्शिनी पुरस्कार एवं सर्वोत्तम कार्यप्रणाली (बेस्ट प्रक्टिसेस) के लिये दुबई अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किया है।अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा संगठन (आईआरईओ) का अक्षय उर्जा पुरस्कार (सन् २००९)
इन्हें आज तक भारत रत्न आज तक इसलिये नहीं मिला कि इन्होने माँगा ही नहीं हर साल भारत रत्न मिलने वालों के नाम के लिये भा.ज.पा अटल बिहारी वाजपेयी, बसपा स्व. काँशी राम जी, और भी ईसी तरह के राजनैतिक नाम या खिलाडी या अभिनेता इन लोगों के नाम ही अधिकतर उछलते हैं |
जो लोग समाज के बीच रहकर समाज के लिये कुछ करते हैं उन्हें पदम भूषण जैसी उपाधी (जो कि सैफ अली खान को भी मिली है) दे कर पीछे हट गयेमेरे सभी पत्रकार मित्रों से मैं कहना चाहूँगा जरा कुछ ऐे लोगों के बारे में लिखें आम आदमी को भी इन लोगों से परिचित करवायेंइन्हे उचित सम्मान दिलवायें ताकि ऐसे लोग और प्रोतसाहित हों
Monday, October 18, 2010
Sunday, October 17, 2010
Saturday, October 16, 2010
Friday, October 15, 2010
Thursday, October 14, 2010
ताज महल मकबरा... नहीं मंदिर है !!
ताज महल एक शिव मंदिर है... - प्रो.पी. एन. ओक को छोड़ कर किसी ने कभी भी इस कथन को चुनौती नही दी कि... "ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था"
प्रो.ओक अपनी पुस्तक "TAJ MAHAL - THE TRUE STORY" द्वारा इस बात में विश्वास रखते हैं कि
सारा विश्व इस धोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था..
प्रो.ओक कहते हैं कि... ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर, एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था. अपने अनुसंधान के दौरान प्रो.ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था.
शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी " ने अपने "बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000 से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है..जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है कि, शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बाद, बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके 6 माह बाद, तारीख़15 ज़मदी-उल- अउवल दिन शुक्रवार,को अकबराबाद आगरा लाया गया फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए, आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) मे पुनः दफनाया गया, लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे, पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.
इस बात कि पुष्टि के लिए यहाँ ये बताना अत्यन्त आवश्यक है कि जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा जयसिंह को दिए गए थे |
यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था ,
उदाहरनार्थ हुमायूँ, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे दफनाये गए हैं ....
प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है |
"महल" शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता
यहाँ यह व्याख्या करना कि महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है | वह कम से कम दो प्रकार से तर्कहीन है |
पहला शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था बल्कि उसका नाम मुमताज-उल-ज़मानी था ...
और दूसरा किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए यह समझ से परे है |
प्रो.ओक दावा करते हैं कि, ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का बिगड़ा हुआ संस्करण है, साथ ही साथ ओक कहते हैं कि
मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी, चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है क्योंकि शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि नही करता है |
इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षतः समर्थन कर रहे हैं | तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान् शिव को समर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था |
न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष पुराना है |
मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष (1631) में हुई थी उसी वर्ष के अंग्रेज भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था
यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन्1638 (मुमताज कि मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया,,परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियो मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था |
==> फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा, के लिखित विवरण से पता चलता है कि, औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था |
प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि, ताजमहल विशाल मकबरा न होकर विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है |
आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं,जो आम जनता की पहुँच से परे हैं
प्रो. ओक. जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति,त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं.
ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है... यदि यह सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही टपकाया जाता,जबकि प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है, फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या मतलब ??
राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं....
प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे
ज़रा सोचिये !!
प्रो. पी. एन. ओक का अनुसंधान पूर्णतयः सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत, शानदार एवं विश्व के महान आश्चर्यों में से एक भवन, "तेजो महालय" को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ को क्यों ???
तथा...
इससे जुड़ी तमाम यादों का सम्बन्ध मुमताज-उल-ज़मानी से क्यों ??
आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से
रूहें लिपट के रोटी हैं हर खासों आम से
अपनों ने बुना था हमें, कुदरत के काम से
फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से
प्रो.ओक अपनी पुस्तक "TAJ MAHAL - THE TRUE STORY" द्वारा इस बात में विश्वास रखते हैं कि
सारा विश्व इस धोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था..
प्रो.ओक कहते हैं कि... ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर, एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था. अपने अनुसंधान के दौरान प्रो.ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था.
शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी " ने अपने "बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000 से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है..जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है कि, शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बाद, बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके 6 माह बाद, तारीख़15 ज़मदी-उल- अउवल दिन शुक्रवार,को अकबराबाद आगरा लाया गया फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए, आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) मे पुनः दफनाया गया, लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे, पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.
इस बात कि पुष्टि के लिए यहाँ ये बताना अत्यन्त आवश्यक है कि जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा जयसिंह को दिए गए थे |
यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था ,
उदाहरनार्थ हुमायूँ, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे दफनाये गए हैं ....
प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है |
"महल" शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता
यहाँ यह व्याख्या करना कि महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है | वह कम से कम दो प्रकार से तर्कहीन है |
पहला शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था बल्कि उसका नाम मुमताज-उल-ज़मानी था ...
और दूसरा किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए यह समझ से परे है |
प्रो.ओक दावा करते हैं कि, ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का बिगड़ा हुआ संस्करण है, साथ ही साथ ओक कहते हैं कि
मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी, चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है क्योंकि शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि नही करता है |
इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षतः समर्थन कर रहे हैं | तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान् शिव को समर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था |
न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष पुराना है |
मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष (1631) में हुई थी उसी वर्ष के अंग्रेज भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था
यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन्1638 (मुमताज कि मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया,,परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियो मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था |
==> फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा, के लिखित विवरण से पता चलता है कि, औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था |
प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि, ताजमहल विशाल मकबरा न होकर विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है |
आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं,जो आम जनता की पहुँच से परे हैं
प्रो. ओक. जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति,त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं.
ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है... यदि यह सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही टपकाया जाता,जबकि प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है, फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या मतलब ??
राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं....
प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे
ज़रा सोचिये !!
प्रो. पी. एन. ओक का अनुसंधान पूर्णतयः सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत, शानदार एवं विश्व के महान आश्चर्यों में से एक भवन, "तेजो महालय" को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ को क्यों ???
तथा...
इससे जुड़ी तमाम यादों का सम्बन्ध मुमताज-उल-ज़मानी से क्यों ??
आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से
रूहें लिपट के रोटी हैं हर खासों आम से
अपनों ने बुना था हमें, कुदरत के काम से
फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से
Saturday, October 2, 2010
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