आजकल पत्रकारिता एक भद्दे मजाक से बढकर और कुछ नहीं है, टीआरपी का खेल आज के पत्रकारों को अनार्थी शब्दों का इस्तेमाल करने तथा सस्ते मनोरंजन को परोसने में खासी मदद कर रहा है।
मांग और पूर्ति के इस दौर में घटिया पत्रकारिता को भी तरजीह मिली है और कुछ news channel इसे भुनाने में लगे हैं। क्या कभी सोचा था, एक जमाने के प्रसिद्ध टीवी शो 'आप की अदालत' के मेजबान रजत शर्मा इस प्रकार की पत्रकारिता को बढ़ावा देंगे।
एक बच्ची जिसे रेल से गिरने के बाद अपने पिता का नाम तक याद नहीं है, समाचार के अनुसार उसे उसकी माँ उस बच्ची को रेल से फ़ेंक कर चली गई थी, क्या इस समाचार को परोसने का कोई और तरीका नहीं था, "मम्मी मम्मी मौत वाली मम्मी" अभी तक उसकी माता या पिता का कोई अता-पता नहीं है शायद मुद्दा कुछ और ही हो। लेकिन दूसरी और उससे एक पत्रकार अनगिनत सवाल पूछता जाता है, कहाँ है वह डॉक्टर तथा पुलिस प्रशासन जो एक बच्ची की मानसिक स्तिथी को न समझते हुए एक गरम समाचार ढूढने वाले के हाथों में उसे थमा देते है। शायद यह वही लोग है जिन्हें तनख्वाह अथवा कोटे की चिंता ज्यादा है, ऊपर से नीचे तक सभी का स्तर एक सा है।
एक वक्त में कहा जाता था, की मीडिया तथा समाचार पत्र एक सभ्य समाज का आएना होता है, लेकिन आज एक भद्दे मजाक से बढ़कर कुछ नहीं है। हमें अपने स्तर को बढ़ाना होगा अन्यथा हम अपने आने वाली पीढी को जवाब नहीं दे पायेंगे की हमने अपने समाज देश के लिए क्या किया। सफाई अपने घर से ही शुरू करनी होगी, और इस जलती हुई मशाल को भुझने न देने की प्रतिज्ञा लेनी होगी।
अभिनव सारस्वत
bhai.... tumhare hindi waale articles ka jawaab nahi hai.... bahut accha likha hai....
ReplyDeletegreat article
thanks swapnil
ReplyDeleteअभिनव सारस्वत ,
ReplyDeleteभाई, आपने ये आजकल की मीडिया का जो चेहरा ::धप्पा:: ब्लॉग से लोगों के सामने लाने की पहल की है, ये कोशिश कबीले तारीफ़ है..
शायद इससे घरों मे बंद लोगों की आँखें खुलेंगी, जो इस तरह के समाचार को पराठे खाते समय देख कर अपना टाइम पास करते हैं..और शो की टीयरपी बड़ा कर मजबूर करते हैं उस मीडिया को ऐसे प्रोग्राम बनाने पर जो इंसानी सोच को गिरा देता है..
काश, आज भी पड़ोसी की बीमारी पर हमारी आँख में आँसू होते..
शुभकामनाओं सहित,
--विनीत सिवाल
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