यहाँ इस देश में एक आदमी कुछ कर सके या न कर सके लेकिन २-६ बच्चे जरूर पैदा कर सकता है... काश इस विषय पर कभी गंभीरता से सोचा होता तो ये भूख आज चाँद हिन्दुस्तानियों को दोनों हाथ फैलाने पर मजबूर न करती। अब दिल्ली, मुंबई में दानी और महान आत्माओं की कमी तो है नहीं। लेकिन देश के अन्य हिस्से जहाँ आम आदमी, किसान, गरीब वर्ग, भूख से आत्महत्या कर रहा है, या अपनी लड़की को बेचकर कर्ज या अन्य परिवारजनों की भूख मिटा रहा है, काश वहां भी कोई मसीहा होता जो अन्न की इस जरूरत को मिटा पाता लगता है कोई तरीका नहीं, कोई इलाज नहीं है इस बिमारी का... बस २ वक्त की रोटी, २ वक्त की रोटी... जरूरत है।
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