Sunday, March 28, 2010

दिल्ली पुलिस - सबसे आगे | नियम तोड़ने में भी आगे !

लाजपत नगर फ्लाईओवर से बाएँ ओर जाना प्रतिबंधित है, लेकिन ये महाशय तो लाल बत्ती की सीमा से भी बाहर निकल कर करतब दिखाने का प्रयास कर रहे हैं...
धन्य है हिंदुस्तान का शहर दिल्ली ओर उसकी दिल्ली पुलिस - सबसे आगे  

Tuesday, March 23, 2010

सबसे गरीब शनिदेव | Poorest Shanideva

पिछले सप्ताह दिन शनिवार दोपहर २:०० बजे मैंने अपने जीवन के सबसे गरीब शनिदेव को देखा... मुझे भी एक हिन्दू होने के नाते  इन शनिदेव से सहानभूति होना लाजमी है, मुझे लगता है की आपका हिंदुत्व भी जाग जाए एवं मेरे अन्य धर्म के भाईयों को भी हमारे प्रति सहानुभूति प्रकट करने का मौका मिले ! माना हम अल्पसंख्यक नहीं है लेकिन हालात उससे भी ज्यादा गंभीर होने लगे हैं !!

Wednesday, March 17, 2010

It is not a mansion but a house: Mayawati



The media had reported that she was building a "grand Taj Mahal" in her village.


New Delhi: "Would you call this a mansion with a hundred ornate windows and floors made of Italian marble?" asked Bahujan Samaj Party chief Mayawati as she escorted a group of visiting journalists around her parents' under-construction bungalow in her ancestral village Badalpur on the outskirts of Delhi.


The BSP chief was reacting to reports in a section of the media that she was building a "grand Taj Mahal" in her village. Ms. Mayawati 's point was that while the bungalow was spacious, it was located in the countryside and was nowhere near as ostentatious as sections of the media had mischievously alleged: "Do you see a Taj Mahal here?" As the invited presspersons went from room to room, she pointed to the "broken floor and the peeling plaster," adding that these were in fact signs the construction material used was inexpensive.


Ms. Mayawati said the house belonged to her parents who had constructed it with funds raised from the sale of other ancestral property. "Had the media checked the revenue records, they would have found out I do not even own this house," she said. Ms. Mayawati saw the "media slander" as part of a larger "conspiracy" aimed at disadvantaging her in the coming Assembly election in Uttar Pradesh, which "the BSP was poised to win."

She said her party was too well placed to be affected by malicious campaigns of this kind.

But such " unrelentingly partisan and deliberately anti-BSP reportage" was likely to tarnish the media as a whole in the eyes of the Dalit community.


Vidya Subrahmaniam



Tuesday, March 16, 2010

गरीब उत्तर प्रदेश | आपकी बहिन मायावती

मेरे अनुसार ५ करोड़ की राशि एक बड़ा मुद्दा नहीं है... मुद्दा है राष्ट्रीय मुद्रा का अपमान, लेकिन होगा भी क्या, कानून बनाया भी इन्ही लोगो ने हैं... सर्वोच्च या उच्त्तम न्यायालय के फैसले से होना भी क्या है !

more n more... |

not showing those pics where work in progress, so please keep clean comment if you want, thanks

Tuesday, March 9, 2010

ऐसा कैसा पैसा | स्वप्निल नरेन्द्र

1 मार्च 2010
रात को मैट्रो स्टेशन की सीढ़ी से नीचे उतरते हुए ख्याल आया कि टाइम क्या हुआ होगा?
घड़ी मैं पहनता नहीं, और फोन निकाल कर टाइम देखने में आलस आता है, सो सड़क पर से ही ऊपर मैट्रो स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर लगी घड़ी की तरफ देखा। उसमें लाल रँग से बड़ा बड़ा लिखा हुआ था, '23:13'।
मैट्रो कार्ड अभी भी मेरे हाथ में ही था, अब चूँकि में अपने पैसे, मैट्रो कार्ड के पाउच के अँदर ही रखता हूँ, तो सोचा कि चलो देख ही लेते हैं कि आज कितने पैसे बचे.... पाउच खोला तो उसमे सिर्फ एक 100 का नोट था, और वो भी साला बीच में से आधा चिरा हुआ।
गुस्सा इसलिए आ रहा था कि मुझे याद ही नहीं था कि ये फटा हुआ नोट आखिर दिया किसने, जो उस घटिया इँसान के मुँह पर वापस मार आता... सो मन मसोस कर वो नोट वापस से पाउच में रख लिया और घर की तरफ चल दिया, वैसे भी काफी भूख लग रही थी।

3 मार्च 2010
रात के 10 से ज़्यादा ही बज रहे थे। मैं आराम से अपने कमरे में बैठा हुआ था कि भाई ने मुझे आवाज लगायी, मैं उनके पास गया तो मुझे एक पर्चा पकड़ा कर भाई साहब बोले कि कुकी का बर्थडे केक इस दुकान से लेकर आना है।
मुझे पता था कि मैं चाहे इन्हें कितना ही कहूंगा कि ये काम इनका है, पर फिर भी जाना मुझे ही पड़ेगा। इसीलिए मैंने ज़रा भी बहस न करते हुए पर्चा हाथ में ले लिया। मेरे पैसे माँगने पर उन्होंने कहा कि पैसे वो पहले ही दे कर आ चुके हैं, मुझे बस केक लाना था।
मैं पर्चा अपने घिसे हुए पजामे की जेब में डाल कर दरवाजे की ही तरफ बढ़ा था कि पीछे से आवाज आयी,
--"अबे ओये! कोल्ड ड्रिंक भी लेकर आइयो।"


पीछे देखा तो मॉन्टी भैया भी वहीं थे, उनका एक हाथ उनकी हाफ-पैन्ट की जेब में और दूसरे में हमेशा की तरह कुछ खाने की चीज़ थी। मेरे घर में मेरे अलावा सभी लड़के हमेशा कुछ न कुछ खाते पीते रहते हैं।
मैंने कहा,
--"मेरे पास पैसे नहीं हैं।"
--"अबे तो दे तो रहा हूँ।", बोल कर उन्होंने 120 रुपये मेरी तरफ बढ़ा दिये।"
--"सिर्फ 120 रुपये?", मैंने सोचा। 

पर मॉन्टी भैया की जेब से पैसे निकल गये वही मेरे लिये हैरानी की बात थी। और वैसे भी पापा ने हमेशा ही सिखाया था, "दिशू बेटा, भागते भूत की लँगोटी भली।"... तो बस पैसे लिये और कपड़े पहनने चल दिया।
मुझे कोई पजामा या हाफ-पैन्ट नहीं मिली, तो मैं अपनी दो दिन पहले पहनी हुई जींस, जो कि मैंने अपने कमरे के दरवाजे के पीछे टाँग रखी थी, टाँग ली।

केक लेने के लिये दुकान पर पहुँचा तो वो भाई दुकान समेटने की तैयारी कर रहा था। मैंने जाते ही पर्चा उसके सामने रख दिया।
उसने मेरी तरफ अजीब तरह से देखते हुए वो पर्चा उठाया, मुझे लोगों द्वारा अजीब तरह से देखने से कोई फर्क नहीं पड़ता, मुझे आदत है।
खैर पर्चा देख कर उसने केक मेरे सामने रख दिया। मैंने उसे दो लीटर वाली 2 कोल्ड ड्रिंक भी निकालने को बोला।
सारा सामान पैक होने के बाद मुझे पता पड़ा कि मुझे 130 रुपये देने हैं। 

मुझे पता था कि मॉन्टी भैया के दिये हुए पैसे कभी पूरे नहीं पड़ते हैं। मैंने जींस की जेब में हाथ डाला तो मैट्रो कार्ड का पाउच निकला और उसमें निकला वही बीच से चिरा हुआ 100 का नोट। नोट की हालत ऐसी थी कि कोई भी लेने को तैयार न होता... पर मैंने फिर भी उसे मॉन्टी भैया के दिये हुए नोट में लगा दिया और उसके काउण्टर पर रख दिया।
उसने नोट उठाये और बिना देखे अपने गल्ले में डाल दिये। हाँ, मुझे थोड़ा बुरा लगा, पर क्या कर सकते हैं?
उसने गल्ले में से मुझे पैसे वापस दिये, पैसे गिनते वक्त मैंने देखा कि 70 रुपयों में एक 10 का चिप्पी लगा नोट था, जो कि कहीं भी चलने वाला था।
मैंने वो नोट अलग निकाल कर वापस देना चाहा पर उसको अपनी तरफ किसी चोर की तरह देखता हुआ पाया।
तभी मुझे याद आया कि मैंने भी तो उसे 100 का बेकार नोट दिया है, पर उस बेचारे को वो पता ही नहीं था। और वो मुझे 10 का नोट देकर सोच रहा होगा कि मैं अभी इसे बदलने के लिये बोलूँगा। बस यही सोच कर मुझे हँसी आ गयी, और मैंने वो 10 का नोट चुपचाप जेब में रख लिया। मैंने उसे अबकी बार देखा तो वो मेरी तरफ हैरानी से देख रहा था। मैंने अपना सामान उठाया और मुस्कुराता हुआ घर चल दिया।

थोड़ी देर बाद....
घर पहुँच कर सारा सामान फ्रिज में रखने के बाद जैसे ही मेरी नज़र फ्रिज के ऊपर गयी, तो वहाँ मुझे मॉन्टी भैया का पर्स दिखायी दिया।
मैंने जेब से वो 10 का मरगिल्ला नोट निकाला, उनका पर्स खोला, उसमें से एक करारा 20 का नोट निकाल कर उसकी जगह पर वही बेकार नोट रख दिया।
10 रुपये मुझे उनसे वैसे भी लेने थे।



- - स्वप्निल नरेन्द्र - -