Wednesday, January 12, 2011

युग पुरुष और सनातन धर्म के प्रणेता स्वामी विवेकानंद ..

युग पुरुष और सनातन धर्म के प्रणेता स्वामी विवेकानंद जी की की कुछ यादें शिकागो धर्म सम्मलेन से |

11 सितम्बर 1893 में शिकागो सर्वधर्म सभा का आरम्भ हुआ | इसमें संसार के भिन्न देशो से विभिन्न धर्मो के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए | अनेक देशों से प्रतिनिधि (representative) इस सभा के लिए आ चुके थे | युवा सन्यासी स्वामी विवेकानंद को विभिन्न धर्मो वाले भारत देश के मान्य प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार करने के लिए सम्मलेन के अधिकारी बड़ी मुश्किल से राज़ी हुए, वह भी इस शर्त पर की इस युवा सन्यासी (स्वामी विवेकानन्द) को केवल शून्यकाल (zero time) में अपने विचार रखने का अवसर दिया जायेगा | जैसे ही स्वामी का नाम पुकारा गया,वे मंच पर पहुचे | गेरुआ वस्त्र उन्नत मस्तक, मर्म भेदी द्रष्टि,मनोहर कांति मय शरीर वाले स्वामी जी को देख सभी लोग चौक गए | विवेकानंद बोले - " माई ब्रदर्स एंड सिस्टर्स ऑफ़ अमेरिका " |

श्रोताओं की गैलरी में एक साथ जोरदार तालियाँ बजी और दो मिनट तक बजती ही रही | स्वामी जी का यह शुद्ध भारतीय व अति आत्मीयतापूर्ण संबोधन अमेरिका के निवासियों के ह्रदयों को छु गया | स्वामी जी का भाषण संक्षिप्त था और पहले से तैयार किया हुआ नहीं था, परन्तु इतना मार्मिक था कि सीधे श्रोताओं के ह्रदय में उतरता चला गया | भाषण समाप्त होने के बाद जब अमेरिका के लोगों ने स्वामी जी के मुह से जब धर्म कि ऐसी व्याख्या सुनी तो वह वाह वाह कर उठे | स्वामी जी कि प्रशंसा में इतनी तालियाँ बजी कि स्वामी जी खुद चकित रह गए | भाषण समाप्त होते ही सभी श्रोता अपनी सीटो से खड़े हो गए और once more- once more कि आवाज़ से पूरा सभा स्थल गूंज उठा | मंच के प्रबंधकों ने बताया कि ये इनका परिचय भाषण (introduction speech) था | विवेकानंद को फिर से सुनाने के लिए अमेरिका वासियों ने इतना आग्रह किया किया की आयोजको को उनका नाम मुख्या वक्ताओं में डालना पड़ा | स्वामी जी के भाषण ने ऐसा लोगों पर जादू किया कि जैसे ही स्वामी जी मंच से उतरे तो उन्हें घेर लिया गया और लोग उनके दीवाने हो गए | 

Sunday, January 9, 2011

भारत के रत्न हरगोविंद खुराना ...

' January 9, 1922 (Age 88)
श्री हर गोविन्द खुराना / Shri Har Gobind Khorna

श्री हर गोविन्द खुराना का जन्म अविभाजित भारतवर्ष के रायपुर (जिला मुल्तान, पंजाब) नामक कस्बे में हुआ था। पटवारी पिता के चार पुत्रों में ये सबसे छोटे थे। प्रतिभावान् विद्यार्थी होने के कारण स्कूल तथा कालेज में इन्हें छात्रवृत्तियाँ मिलीं। पंजाब विश्वविद्यालय से सन् 1943 में बी. एस-सी. (आनर्स) तथा सन् 1945 में एम. एस-सी. (ऑनर्स) परीक्षाओं में ये उत्तीर्ण हुए तथा भारत सरकार से छात्रवृत्ति पाकर इंग्लैंड गए। यहाँ लिवरपूल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ए. रॉबर्टसन् के अधीन अनुसंधान कर इन्होंने डाक्टरैट की उपाधि प्राप्त की। इन्हें फिर भारत सरकार से शोधवृत्ति मिलीं और ये जूरिख (स्विट्सरलैंड) के फेडरल इंस्टिटयूट ऑव टेक्नॉलोजी में प्रोफेसर वी. प्रेलॉग के साथ अन्वेषण में प्रवृत्त हुए।

भारत में वापस आकर डाक्टर खुराना को अपने योग्य कोई काम न मिला, जो अत्यंत दुखद था। निराश होकर वह इंग्लैंड चले गए, जहाँ केंब्रिज विश्वविद्यालय में सदस्यता तथा लार्ड टाड के साथ कार्य करने का अवसर मिला1 सन् 1952 में श्री खुराना वैकवर (कैनाडा) की ब्रिटिश कोलंबिया अनुसंधान परिषद् के जैवरसायन विभाग के अध्यक्ष नियुक्त हुए। सन् 1960 में इन्होंने संयुक्त राज्य अमरीका के विस्कान्सिन विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑव एन्ज़ाइम रिसर्च में प्रोफेसर का पद पाया और अब इसी संस्था के निदेशक है। यहाँ उन्होंने अमरीकी नागरिकता स्वीकार कर ली। 

ये हमारा लिए शर्म की बात है की इतने प्रतिभावान वैज्ञानिक को हम सम्मान न दे सके और इसी कारण वह व्यक्ति निराश हो कर वापस विदेश चला गया जहां उनको खूब सम्मान मिला | इस प्रतिभावान वैज्ञानिक का इनके अध्ययन का विषय न्यूक्लिऔटिड नामक उपसमुच्चर्यों की अतयंत जटिल, मूल, रासायनिक संरचनाएँ हैं। डाक्टर खुराना इन समुच्चयों का योग कर महत्व के दो वर्गों के न्यूक्लिप्रोटिड इन्जाइम नामक यौगिकों को बनाने में सफल हो गए हैं, इनकी इसी खोज के लिए श्री खुराना को 1968 में नोबेल पुरस्कार मिला |

Har Gobind Khorana, or Hargobind Khorana (Punjabi: ਹਰਿ ਗੋਬਿੰਦ ਖੁਰਾਨਾ , born January 9, 1922) is an Indian-born American biochemist who shared the Nobel Prize in Physiology or Medicine in 1968 with Marshall W. Nirenberg and Robert W. Holley for research that helped to show how the nucleotides in nucleic acids, which carry the genetic code of the cell, control the cell’s synthesis of proteins. Khorana and Nirenberg were also awarded the Louisa Gross Horwitz Prize from Columbia University in the same year. He became a naturalized citizen of the United States in 1966,[2] and subsequently received the National Medal of Science. He currently lives in Cambridge, Massachusetts, United States serving as MIT's Alfred P. Sloan Professor of Biology and Chemistry, Emeritus.

Khorana was born in Raipur, (now in Kabirwala Tehsil, Khanewal District), a village in Punjab, British India (now Pakistan). His father was the village "patwari", an equivalent of a taxation official. He was homeschooled by his father, and he later attended D.A.V. Multan High School. He finished his B.Sc. from Punjab University, Lahore in 1943 and M.Sc from Punjab University in 1945. In 1945, he began studies at the University of Liverpool. After earning a PhD in 1948, he continued his postdoctoral studies in Zürich (1948–49). Subsequently, he spent two years at Cambridge and his interests in proteins and nucleic acids took root at that time. In 1952 he went to the University of British Columbia, Vancouver and in 1960 moved to the University of Wisconsin–Madison. In 1970 Khorana became the Alfred Sloan Professor of Biology and Chemistry at the Massachusetts Institute of Technology where he worked until retiring in 2007. He is a member of the Board of Scientific Governors at The Scripps Research Institute, and currently holds Professor Emeritus status at MIT.

Thursday, January 6, 2011

Salute to Madan Mohan Malaviya...

महामना मदन मोहन मालवीय (25-dec-1861) की जयंती पर शत शत नमन | शीश झुकता है काशी विश्विद्यालय के संस्थापक, स्वतंत्रता सेनानी और महान शिक्षा विद मदन मोहन मालवीय जी के समक्ष |


पंडित मदन मोहन मालवीय जिनको लोग सामान्यतया केवल महामना मालवीय के नाम से जानते है मूर्धन्य राष्ट्रिय नेताओं में अग्रणी थे | जितनी श्रद्धा और आदर उनके लिए शिक्षित वर्ग में था, उतना ही साधरण वर्ग में भी था | मालवीय जी की विद्वता असाधारण थी, और वह सुसंस्कृत व्यक्ति थे | विनम्र और शालीनता उनमे कूट कूट के भरी थी | वह अपने युग के सर्वश्रेष्ट वक्ता थे, वह हिंदी,संस्कृत और अंग्रेजी तीन भाषाओँ में महारथ हासिल किये हुए थे | मालवीय जी का शरीर भव्य और सुंदर था एवं उनका व्यक्तित्व्य प्रभावोत्पादक | वे वेश भूषा ही नहीं बल्कि खान -पान, रहन-सहन, में सादगी की मूर्ति थे | मालवीय जी समाज में एक रसता लाने के लिए और दलितों को के उत्थान के लिए उन्होंने पी.एन. राज भोज (दलित लीडर) के साथ 200 दलितों को इकठ्ठा कर उनका मंदिरों और रथ यात्रा में प्रवेश करवाया | 

Madan Mohan Malaviya (1861–1946) was an Indian politician, educationist, and freedom fighter notable for his role in the Indian independence movement and his espousal of Hindu nationalism. Later in life, he was also addressed as 'Mahamana. He was the President of the Indian National Congress on three occasions and today is most remembered as the founder of the largest residential university in Asia having over 12,000 students across arts sciences, engineering and technology, Banaras Hindu University (BHU) at Varanasi in 1916, of which he also remained the Vice Chancellor, 1919–1938. Pandit Malaviya was one of the founders of Scouting in India.

He also founded a highly influential, English-newspaper, The Leader published from Allahabad in 1909. It was a unique and rare combination in him that he was a political leader of mass acceptance, together with being a widely respected educational luminary. To redeem his resolve to serve the cause of education and social-service he renounced his well established practice of law in 1911, for ever. In order to follow the tradition of Sanyaas throughout his life, he pursued the avowed commitment to live on the society's support.