Monday, December 20, 2010

कांग्रेस धर्म की राजनीति करती है : विकिलीक्स


विकिलीक्स पर जारी अमेरिका के एक गोपनीय दस्तावेज में अल्पसंख्यक मामलों के पूर्व मंत्री ए. आर. अंतुले के विवादास्पद बयान का हवाला देते हुए कहा गया है कि मुंबई हमले के बाद कांग्रेस पार्टी का एक वर्ग, धर्म पर आधारित राजनीति करते नजर आया था । 

यह दस्तावेज 23 दिसंबर, 2008 को नई दिल्ली में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत डेविड मलफोर्ड ने अपने देश के विदेश विभाग को भेजा था। इस दस्तावेज में मलफोर्ड ने कहा, ' अंतुले के बयान से खुद को अलग करने के दो दिन बाद ही कांग्रेस ने एक विवादास्पद बयान जारी किया, जिससे साजिश के बारे में संदेह को बल मिला। उस समय अंतुले के पूरी तरह से बेबुनियाद दावों को भारतीय मुस्लिम समाज से भी समर्थन मिला। ' 

मलफोर्ड ने लिखा है कि, ' आगामी चुनावों में लाभ उठाने के लिए कांग्रेस पार्टी ने अंतुले के बयान को खारिज करने के अपने रुख से पल्ला झाड़ लिया और खुद इस साजिश को लेकर भी सवाल खड़े कर दिए। ' 

विकीलीक्स पर जारी दस्तावेज के मुताबिक अमेरिकी राजदूत ने कहा, ' गृह मंत्री पी. चिदंबरम की ओर से अंतुले की टिप्पणियों को खारिज कर दिए जाने के बावजूद भारतीय मुसलमानों की यह राय बनी रहेगी कि वे सुरक्षा एजेंसियों के जरिए निशाना बनाए जा रहे हैं। ' 

मलफोर्ड ने कहा, 'पूरे घटनाक्रम से यह पता चला है कि अगर कांग्रेस को लगे कि जाति और धर्म आधारित राजनीति उसके हित में हैं तो वह पूरी तैयारी के साथ इस ओर जाएगी।' 

विकीलीक्स का दावा है कि उसके ओर से जारी किए गए लगभग ढाई लाख दस्तावेजों में तकरीबन 1300 दस्तावेज नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास के हैं। इस दस्तावेज में अमेरिकी राजदूत ने कहा, 'कांग्रेस पार्टी की ओर से पहले कहा गया था कि हेमंत करकरे सहित मुंबई पुलिस के तीन वरिष्ठ अधिकारियों का मारा जाना एक इत्तेफाक है। अंतुले की टिप्पणियों के संदर्भ में दिया गया यह बयान सही था। परंतु मुस्लिम समुदाय में अंतुले के दावों को समर्थन मिलता देख कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओं को इसका फायदा उठाने की बात सूझ गई।' 

मलफोर्ड के मुताबिक, 'राज्यों के विधानसभा चुनावों में उत्साहजनक जीत मिलने के बावजूद कांग्रेस ने मुंबई हमले की साजिश पर संदेह खड़ा करके एक स्वार्थी सियासी समीकरण की ओर कदम बढ़ाया।' 

इस दस्तावेज में कहा गया है कि अंतुले ने 17 दिसंबर, 2008 को दिए गए अपने बयान से एक राजनीतिक विवाद खड़ा किया। अंतुले ने कहा था कि आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) के प्रमुख करकरे की हत्या मालेगांव विस्फोट की जांच से जुड़ी लगती है। उल्लेखनीय है कि मालेगांव विस्फोट मामले में कुछ कट्टरपंथी हिंदू संगठनों पर संदेह है।
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Wednesday, December 15, 2010

वीर क्रांतिकारियों को नमन ...


बलिदान दिवस के अवसर पर India - Behind The Lens की ओर से की गयी पहल के दौरान खुर्जा (जिला- बुलंदशहर) के सरकारी विद्यालय के छोटे छोटे बच्चो को आसान शब्दों के माध्यम से शहीद बिस्मिल,असफाक उल्ला खान,ठाकुर रोशन सिंह, और राजेंद्र लहरी के बलिदान की कथा और उनके बलिदान के महत्व को समझाते India - Behind The Lens के चेतन शर्मा, अनुराग, दिव्येंदु प्रताप सिंह |

Friday, December 10, 2010

शहीदों का सम्मान करो !!

सरकार का कैप्टन कोहली की मौत की फिर जांच से इनकार :

18 राष्ट्रीय रायफल्स के कैप्टन सुमित कोहली की रहस्यमय हालत में हुई मृत्यु पर फिर जांच से सरकार ने मना कर दिया | 30 अप्रैल 2006 को कैप्टन कोहली की गोली लगी लाश, उनके कमरे (आर्मी बैरक) में मिली थी | कोहली को मृत्यु से मात्र दो महीने पहले ही देश का तीसरा सबसे बड़ा पुरस्कार शौर्य चक्र मिला था | कोहली की माँ ने सेना पर गंभीर आरोप लगते हुए कहा है की सुमित ने आत्महत्या नहीं की थी, उसका क़त्ल हुआ है | आगे कैप्टन की माँ कहती है की "सुमित सेना में हो रहे भ्रष्टाचार को लेकर बहुत ज्यादा डिप्रेशन में था और बार बार मुझ से कहता था की माँ तुम नहीं जनती हो की सेना में कितना भ्रष्टाचार है", और ये ही राज़ सुमित की मौत का कारण बन गया | यहाँ सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने की जगह कैप्टन कोहली की मौत पर दोबारा जांच को ही मना कर दिया गया | कैप्टन कोहली की बहन ने कहा है की पहले जांच का भरोसा देने के बाद आज रक्षा मंत्री एंटनी, लोकसभा में सुमित की कोहली की मौत की जांच की बात को सिरे से नकार गए, जो ये दर्शाता है की कहीं न कहीं दाल में कुछ काला है जिसे रक्षा मंत्री और अन्य लोग छिपा रहे है | हमें समझ नहीं आता की कब तक ऐसे वीर पूत जो सेना में भर्ती होते है और लड़ते है अपने देश के लिए अपनी जान की परवाह किये बगैर तो क्यों उनको सम्मान नहीं दिया जाता है | ऐसा क्या इतना बड़ा राज़ था की जिसे सामने लाने से रक्षा मंत्री भी डर रहे है ? सेना से जुड़े कुछ लोग दबी जबान में ये भी मानते है कारगिल युद्ध में कुछ भारतीय सेना के अधिकारियों ने दुश्मन देश की चंद पैसों के लिए मदद कर, अपने ही जवानों की जान को खतरे में डाल दिया था, और वो कारगिल में हो रही इस घुसपैठ कर जानते थे और अपनी ही सेना को गुमराह कर रहे थे ? क्या देश के हर कोने में हो रहे भ्रष्टाचार से, अब सेना भी अछूती नहीं रही है ? क्या सेना ईमानदारी का ये ईनाम मिलता है की, जवान को उसकी मौत के बाद भी सम्मान और न्याय नहीं मिलता है ? आदर्श सोसाईटी घोटाले में भी सेना के बड़े अधिकारियों का नाम सामने आया था | सेना का इस तरह भ्रष्टाचार में शामिल पाया जाना आम जनता के लिए धक्का है, और सेना की छवि पर एक न छूटने वाला कलंक |

Thursday, November 18, 2010

क्यों अपमान होता है यहाँ ईमानदारी का और ईमानदार अधिकारियों का ?


ये है एक बेहद ईमानदार आई.ए.एस अधिकारी (सेवानिवृत) और पुरस्कार विजेता लेखक श्री राजू शर्मा जी की सत्य घटना |

23 जून 1959 को जन्मे डॉ. शर्मा ने दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफंस कॉलेज विश्वविद्यालय से 1979 में भौतिकी (ऑनर्स) में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और दिल्ली विश्वविद्यालय के टॉपर रहे, तथा सेंट स्टीफंस कॉलेज से ही 1981 में भौतिकी में पोस्ट गेरजुएशन पूरा किया. उन्होंने 1998 में चंडीगढ़, पंजाब विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन इंडियन इंस्टिट्यूट ( Indian Institute of Public Administration.) से अपने एम. फिल किया था और निदेशक का पदक (Director's Medal) के प्राप्तकर्ता थे. उन्होंने 2003 में पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में लखनऊ विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की उनके शोध का विषय था "Bureaucratic Process and its implications for Governance: A Study of Uttar Pradesh".

1982 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर आई.ए.एस अधिकारी श्री शर्मा ने अपने करियर की शुरुआत भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड कर और ईमानदारी को अपना धर्म मान कर शायद इसी कारण कभी उनको महत्वपूर्ण पद नहीं दिया गया, अगर दिया भी गया तो ज्यादा दिन टिकने नहीं दिया| शायद यही ईमानदारी उनके लिए सज़ा बनती जा रही थी, लेकिन अपने सिद्धांतों से कभी नहीं डिगे, अपने ईमानदारी के कारण उन पर कई जान लेवा हमले भी हुए ? लेकिन इन हमलों से बेपरवाह श्री शर्मा ने अपने कर्तव्यों का पालन करते गए | कई बार सरकार की बेरुखी के कारण वे लम्बी छुट्टी पर भी चले गए | लेकिन जब भी उन्हें कोई महत्वपूर्ण पद दिया गया उन्होंने अपनी ईमानदारी दिखाते हुए अपना काम किया, जो सदैव जनहित में रहा |

प्रतिनियुक्ति (Deputation) के दौरान केंद्र में फरवरी 2008 में उनको यू.जी.सी (यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन) के सचिव का पद दिया गया, अपनी कार्य शैली के अनुसार उन्होंने कड़ी मेहनत से कुल 44 ऐसे संस्थानों की लिस्ट तैयार की जो मानकों (standard) के अनुसार नहीं थे एवं छात्र के भविष्यों के साथ खेल रहे थे श्री शर्मा ने इन संस्थानों के खिलाफ उचित कार्यवाही की मांग की , जिससे सम्बंधित महकमों में हडकंप मच गया, जितने भी लोग इस फर्जीवाड़े में शामिल थे उनके होश उड़ गए, इस कारण उलट श्री शर्मा पर उनके विरोधियों ने ऊँगली उठानी शुरू कर दी, क्योकि उस लिस्ट में कुछ बड़े संस्थान और रसूखदार लोग शामिल थे | सम्बंधित मंत्रालय ने जांच के आदेश दिए और श्री शर्मा को जांच होने तक उनके पद से हटा दिया गया | श्री शर्मा के हट जाने से उनके विरोधियों ने राहत की साँस तो ली, लेकिन बाद में मंत्रालय ने जांच में शर्मा को सही पाया | उनकी ईमानदारी से परेशान उनके विरोधियों ने ये कहना शुरू कर दिया की ये (श्री शर्मा ) उत्तर प्रदेश कैडर के अधिकारी है और इनका केंद्र में नहीं रहना उचित नहीं है |

इसके बाद दो वर्षों तक केंद्र में रहने के बाद श्री शर्मा अपने कैडर उत्तर प्रदेश लौटे | प्रतिनियुक्ति से लौटते ही श्री शर्मा को उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग का मुख्य सचिव बनाया गया, अपनी कार्य शैली और ईमानदारी के सिद्धांत पर चलते हुए श्री शर्मा ने काम किये , लेकिन कुछ ही दिनों में उत्तर प्रदेश सरकार ने उनका तबादला उच्च शिक्षा विभाग के समकक्ष पद पर कर दिया फिर कुछ ही दिन बीते होंगे तभी श्री शर्मा का तबादला राजस्व विभाग में कर दिया गया| दो महीनो में तीन तबादलों से परेशान श्री शर्मा ने अपनी बाकी बची नौ वर्षों की नौकरी की चिंता किये बिना अपना इस्तीफा सरकार को दे दिया | अपनी ईमानदारी के हर प्रयासों को भ्रष्टाचार के सामने हारता देख निराश श्री शर्मा भ्रष्टाचार के आगे हार गए | क्या इतने शिक्षित और मेधावी अधिकारी का यूँ हार जाना देश की प्रतिष्ठा पर सवाल नहीं है, क्या इससे बेईमानी और मजबूत नहीं होगी ? क्या ऐसे ईमानदार और शिक्षित अधिकारी का खोना इस देश का दुर्भाग्य नहीं है ? कब तक यूँ श्री शर्मा जैसे ईमानदार अधिकारी यूँ बेईमानी की भेट चढ़ते रहेंगे | कब ये भ्रष्ट नेता और अधिकारी देश को यूँ नोचते रहेंगे | और हम सिर्फ ये तमाशा देखते रहेंगे |

Monday, November 15, 2010

हमारे देश में ईमानदारों की क़द्र क्यों नहीं है.... ?

salutes Sanjeev Chaturvedi (Indian Forest Services) 2002 Batch for his honesty ... 11 Transfer within 4 years !!

चंडीगढ़. न तो आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ईमानदारी की अपनी आदत से बाज आ रहे हैं और न ही उनके खिलाफ लामबंद हुए लोग उनके खिलाफ कार्रवाई कराने से। अनियमितताओं का एक मामला उजागर करने पर सस्पेंड होने के बाद चतुर्वेदी को बहाल करने के लिए खुद राष्ट्रपति तक को आदेश जारी करने पड़ चुके हैं। उनका अब तक चार साल में 11 बार ट्रांसफर हो चुका है।

गलत को गलत कहने की उनकी जिद कुरुक्षेत्र से शुरू हुई, जहां 2002 बैच के इस आईएफएस अधिकारी को पहली पोस्टिंग मिली थी। वहां वाइल्डलाइफ एरिया के बीचोंबीच एक नहर निकालने के लिए सैंकड़ों पेड़ों की अवैध कटाई के खिलाफ उन्होंने हरियाणा सिंचाई विभाग के ठेकेदारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। इसके बाद शुरू हुई असल जंग। राज्य के तत्कालीन मुख्य वन्य जीव संरक्षक ने चतुर्वेदी की शिकायत को नकार दिया और इसके साथ ही चतुर्वेदी के तबादलों का दौर शुरू हो गया। 

मंजुनाथ ट्रस्ट से व्हिसल ब्लोअर पुरस्कार पा चुके चतुर्वेदी का जब फतेहाबाद तबादला हुआ तो यहां एक राजनेता की निजी जमीन पर सरकारी पैसे से बनने वाले हर्बल पार्क पर उनकी नजर पड़ गई। संजीव चतुर्वेदी अपनी फॉर्म में आए और उधर नेता जी ने अपनी जुगत लगाकर उन्हें सबक सिखाने की ठानी। नतीजा, चतुर्वेदी सस्पेंड कर दिए गए। फिलहाल, चतुर्वेदी हिसार में तैनात हैं। 

जिद और जुनून अभी ठंडा नहीं पड़ा है।वे केंद्र सरकार की ओर से राज्य सरकार को भेजे गए नोटिस के जबाव के इंतजार में हैं। ताकि यह तय किया जा सके कि स्वच्छ और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने का दावा करने वाली सरकार ईमानदारी से ड्यूटी देने की जिद पर अड़े इस आईएफएस का साथ देती है या नहीं।

..तो भी बरकरार रही जिद 

चतुर्वेदी को जब डीएफओ झज्जर बनाया गया तो उन्होंने पौधरोपण में करोड़ों का घपला पकड़ा। एक-एक पौधे की गिनती करवा ली, नौ वन अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया और 40 को बर्खास्तगी नोटिस जारी किया और शाम को घर लौट कर खुद के अगले तबादले की तैयारी शुरु की |

Wednesday, November 10, 2010

हमारे देश की दुर्दशा | यहां ईमानदार और उच्च शिक्षित अफसरों को ईनाम में मिलती है मौत...





गौतम गोस्वामी ने छोड़े हैं जो सवाल! बिहार में विकास की बातें चुनाव के बहाने बहुत जोर जोर से हुई। यह भी कहा गया कि लालू यादव की सरकार ने तो घपलों के अलावा कुछ किया ही नहीं था। इस पूरे शोर में एक नाम किसी को याद नहीं आया जो पिछले साल 6 जनवरी 2009 को संसार से विदा ले चुका था और इतने सारे सवाल छोड़ गया था कि उनके जवाब नेताओं के वश में नहीं है।



गौतम गोस्वामी नाम का यह आदमी हमारी व्यवस्था और तंत्र पर खुद सवाल है। बिहार का एक लड़का बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की मेडीकल प्रवेश परीक्षा में टॉप करता है, एमबीबीएस और एमडी पास करता है, वहां भी टॉप करता है, फिर आईएएस का इम्तिहान देता है, वहां भी सबसे ज्यादा नंबर पाने वालों में होता हैं, पटना के कलेक्टर के तौर पर बाढ़ राहत का काम इतना मन लगा के करता है कि दुनिया की सबसे बड़ी पत्रिकाओं में से एक टाइम उसे नायक के तौर पर कवर पर छापती है। मगर कुछ ही दिन बाद इस राहत के सिलसिले में घपले का पता चलता है और कुल 27 लोगों के खिलाफ चार्जशीट लिखी जाती है। पकड़े सिर्फ गौतम गोस्वामी और एक दलाल किस्म का आदमी संतोष झा ही जाते हैं।


गौतम गोस्वामी नायक थे या खलनायक लेकिन उनकी मौत से उठे सवाल अब तक जवाब मांगते हैं। कलेक्टर खुद फाइलें चेक और सामान की खरीददारी के टेंडर नहीं बनाता। सत्रह करोड़ रुपए के घपले का आरोप था और नेता लोग ऐसे घपले में शामिल नहीं हो इसकी कल्पना कौन कर सकता है? मगर जेल उस गौतम गोस्वामी कोजाना पड़ा जिसमें इतनी हिम्मत थी कि पटना के कलेक्टर के नाते तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी को आचार संहिता के तहत रात के दस बजते ही चुनाव सभा के मंच से उतार सकता था। सबसे पहले गौतम गोस्वामी का नाम इसी घटना से जाना गया था। गौतम के पिता उत्पलेंदु गोस्वामी सबूत दे कर कहते हैं कि घपला नेताओं और उनके दलालों ने किया और फंसाया उनके बेटे को गया।


जिंदगी में सफलताएं ही सफलताएं पाने वाले गौतम गोस्वामी के बारे में किसने सोचा होगा कि जेल में रहते हुए तनाव और कुपोषण की वजह से यह युवक यकृत के कैंसर का शिकार हो जाएगा और कुछ ही दिनों में मरने के कगार पर पहुंच जाएगा। राष्ट्रपति शासन था तब गौतम के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी, इसके बाद जब हालत बहुत खराब हुई तो नीतिश कुमार सरकार ने गौतम को न सिर्फ जेल से छोड़ा बल्कि इलाज की सुविधाआें के लिए सरकारी सेवाओं वापस ले लिया। तब तक बहुत देर हो चुकी थी। गौतम पटना में गंगा के किनारे गुलाबी घाट मरघट पर एक चिता पर चढ़े और राख बन गए। कैंसर ने उन्हें इतना कमजोर कर दिया था कि दिल का दौरा पड़ा और सिर्फ चालीस साल की उम्र में गौतम मारे गए। बाकी 26 अभियुक्ताेंं का क्या हुआ और लोकतंत्र के कलंक होने के बावजूद राहत का पैसा हजम करने वाले इन लोगों को कौन सी संहिता के तहत अभयदान मिल गया यह कोई नहीं जानता।


गौतम ने आईएएस की नौकरी ग्यारह साल की और उनके ग्यारह तबादले हुए। दो बार तो पटना के ही कलेक्टर बने। जो सरकारी अधिकारी नेताओं को खिला पिला कर खुश रखता है वह पूरी जिंदगी एक ही कुर्सी पर काट देता है और नेता भी उनका साथ देते है। गौतम गोस्वामी को जेल में मौत नसीब हुई इसी से जाहिर है कि सत्ता के दलालों में वे शामिल नहीं थे। राहत का पैसा जिस प्राइवेट संस्था में जमा किया गया उसका नाम सरकार की संस्था से मिलता जुलता था और यह संस्था लालू यादव के सबसे खास एक नेता की थी।


गौतम गोस्वामी जब जेल से बाहर आए तो उन्हें उम्मीद थी कि वे अपना सच साबित कर पाएंगे मगर अदालतों के पास वक्त ही नहीं था। जब मामले की सुनवाई होती तब गौतम की सुनी जाती और यह मौका के जीते जी कभी आया नहीं। गौतम की मौत से राहत महसूस करने वाले बहुत होंगे क्यांकि अब उनके कलंक उजागर करने वाला कोई नहीं है। अभी तक की जांच में पता लग चुका है कि फर्जी संस्था को असली बता कर और फाइलों पर नकली कारण दर्ज कर के गौतम गोस्वामी से चेकों पर दस्तखत करवाए जाते रहे और आखिरकार सारे कलंक गौतम के सिर पर मढ़ दिए गए।


गौतम की पत्नी अनुराधा भी डॉक्टर हैं और एक नादान बेटी और बेटा है। न्याय के लिए न सही, तंत्र के न सही, लोकतंत्र के लिए न सही, इन बच्चों को कलंकमुक्त करने के लिए उस घोटाले की पूरी जांच होनी चाहिए और सही नतीजे सामने आने चाहिए जिसने गौतम गोस्वामी जैसे शानदार कैरियर वाले आदमी को कलंक का पात्र बना दिया। टाइम पत्रिका ने तो गौतम को शाहरूख खान और अनुष्का शंकर के बराबर रखा था। गौतम की जिंदगी को कहानी बना कर टाइम पत्रिका के भारत संवाददाता अरविंद अडिग ने उपन्यास लिखा और इस उपन्यास पर बाकायदा बुकर्स पुरस्कार से सम्मानित हुए।


गौतम गोस्वामी को याद करने वाले बहुत सारे लोग हैं। इनमें से बड़ी संख्या समस्तीपुर में हैं जहां आईएएस में आने के बाद गौतम गोस्वामी रौशेरा ब्लॉक के अनुविभागीय अधिकारी बने थे। अपना अफसरी का काम करने के बाद गौतम और उनकी पत्नी गरीबों और गांव वालों का इलाज करते थे। इसके लिए कोई फीस नहीं लेते थे। बिहार में लोकतंत्र एक बार फिर जैसे भी वापस आया है मगर इस लोकतंत्र का मतलब सिर्फ हवाई पाठ पढ़ा देने और गुनाहों की अपनी परिभाषा गढ़ लेने से हैं तो इस लोकतंत्र का मतलब क्या है? गौतम गोस्वामी की आत्मा यह सवाल पूछती है और हम में से किसी के पास जवाब नहीं हैं।

Thursday, October 28, 2010

भगत सिंह का फांसी से पहले अपने दोस्तों को आखिरी भावुक कर देने वाला पत्र

भगत सिंह का फांसी से पहले अपने दोस्तों को आखिरी भावुक कर देने वाला पत्र..

स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता। मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है- इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता। आज मेरी कमजोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए।

लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगतसिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी। हाँ, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं, उनका हजारवाँ भाग भी पूरा नहीं कर सका। अगर स्वतंत्र, जिंदा रह सकता, तब शायद उन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता। इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फाँकसी से बचने का नहीं आया। मुझसे अधिक भाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है। कामना है कि यह और नजदीक हो जाए।

आपका साथी - भगतसिंह

Wednesday, October 27, 2010

भागरत सिंह के पत्रों के अंश !

भगतसिंह के पत्र से 



क्रांतिकारी न्याय के लिए लड़ते हैं अन्याय के लिए बल प्रयोग नहीं करते है। क्रांतिकारी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अपनी शारीरिक एवं नैतिक शक्ति दोनों के प्रयोग में विश्वास करता है। इसलिए अब सवाल यह नहीं है कि आप हिंसा चाहते है या अहिंसा? बल्कि सवाल तो यह है कि आप अपने उद्देश्य प्राप्ति के लिए शारीरिक बल सहित नैतिक बल का प्रयोग करना चाहते है या केवल आत्मिक शक्ति का? 

क्रांति पूंजीवाद, वर्गवाद तथा कुछ लोगों को ही विशेषाधिकार दिलाने वाली प्रणाली का अंत कर देंगी। यह राष्ट्र को अपने पैरों पर खडा करेगी, उससे नवीन राष्ट्र और नये समाज का जन्म होगा। क्रांति से सबसे बड़ी बात तो यह होगी कि वह मजदूर तथा किसानों का राज कायम कर उन सब सामाजिक अवांछित तत्वों को समाप्त कर देगी जो राजनीतिक शक्ति को हथियार मान बैठे है। आतंकवाद क्रांति नहीं है। क्रांति का एक आवश्यक और अवश्यंभावी अंग है। आतंकवाद आम जन के मन में भय पैदा करता है और पीडि़त जनता में प्रतिशोध की भावना जागृत करके उन्हे शक्ति प्रदान करता है। क्रांति के लिए खूनी संघर्ष अनिवार्य नहीं है और न ही उसमे व्यक्तिगत प्रतिङ्क्षहसा के लिए कोई स्थान है वह बम और पिस्तौल का संप्रदाय नहीं है। क्रांति से हमारा अभिप्राय है- अन्याय पर आधारित मौजूद समाज व्यवस्था में आमूल परिवर्तन। इंकलाब जिंदाबा

Friday, October 22, 2010

900 Crore ka का कनाट प्लेस... पेरिस में आपका स्वागत है ...

दलाल या पत्रकार ?

मीडिया में किसी पक्ष विशेष की चाटुकारिता या दलाली ने किस कदर पैर पसार लिए है, उसका उदाहरण तो सबके सामने है ही | हम सब देखते है की किसी ख़ास पार्टी या सम्प्रदाय के खिलाफ हमारे समाचार चैनल बोलते रहते है, इन लोगों को सिर्फ कट्टरता आर.एस.एस में दिखाई देती है, लेकिन इंडियन मुजाहिद्दीन और गिलानी जैसे देश द्रोहियों का समर्थन करने वाले लोग दिखाई नहीं देते है | कल की ही घटना को ले लीजिये, गिलानी का विरोध करने वाले लोग अचानक आक्रामक नहीं हुए, वो आक्रामक इसलिए हुए क्योकि गिलानी के समर्थन ने हिन्दुस्तान मुर्दाबाद और कश्मीर को आज़ादी दो के नारे लगाये, तब जाकर कुछ ये हंगामा बरपा | आप बताइए की क्या गलती की हमारे भाइयों ने हंगामा कर, क्या ये उचित था की हम हिन्दुस्तान मुर्दाबाद के नारे सुनते रहे और उन देशद्रोहियों को दयनीय की तरह देखते रहे, और मीडिया में एक खबर ऐसी नहीं आई जिसमे कहा गया हो की इन देश विरोधी ताकतों ने हिन्दुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाये, बस इतना बताया की कुछ ए.वी.बी.पी के कार्यकर्ताओं ने कार्यक्रम को होने नहीं दिया और हंगामा मचाया | इस प्रकार की खबरे दिखाने में सबसे आगे पागलों की तरह बेतहाशा भाग रहा है, एन.डी.टी.वी- इंडिया | आज इसी चैनल की एक पत्रकार की बात करते है नाम है बरखा दत्त | नाम तो काफी प्रख्यात है ही इनका लेकिन मैं ने आज तक इनका नाम किसी अच्छे काम के लिए है सुना, आप यकीन नहीं मानेंगे ? लेकिन मैं इसके सबूत दूंगा | एक और काम ये करती है, इस्लाम का प्रचार लेकिन उसे ये एक अलग नज़र से देखती है, या ये कह लीजिये की ये उनके उत्थान की बातें करती है | लेकिन ऐसा क्या उत्थान जो दिन भर दिखाया जाए क्या कोई धर्म इतना कमजोर है जिसका प्रचार या उनका पक्ष दिखाना आवश्यक है, और वो धर्म जो विश्व में दूसरे नंबर पर है, और काफी सम्रद्ध है संस्कृति के मामले में | खैर बात को केंद्र बिंदु में रखे तो सही होगा | हम बात कर रहे थे बरखा जी की आज बताते है कुछ ऐसे बिंदु जो उनके बारे में खासे प्रचिलित है |


1. बरखा दत्त विख्यात हुई कारगिल की युद्ध से, जहां उन्होंने एक कवरेज करी युद्ध पर, जो कठिन थी, और वो महिला करे तो और भी कठिन | लेकिन शायद कम लोगो को पता है की बरखा जी को आदेश मिला था सेना की ओर से की आप लाइव कवरेज न दे लेकिन उहोने किया जिसका परिणाम ये हुआ की कि एडमिरल सुरेश मेहता ने बरखा को कारगिल युद्ध के दौरान तीन जवानों की हत्या का दोषी माना था 
जिसमे बरखा की लाइव कवरेज के दौरान बताये गए लोकेशन को ट्रेस कर पाकिस्तान ने तीन भारतीय जवानों को मार गिराया था | जबकि उन्हें ऐसा करने से मोर्चे पर मौजूद सैनिकों ने बार बार रोका था 
हैरानी ये कि उस वक़्त रक्षा मंत्रालय के जबरदस्त विरोध के बावजूद बरखा के खिलाफ कोई वैधानिक कार्यवाही नहीं की जा सकी थी |


2. ए. रजा (टेलिकॉम मंत्री) ये इसलिए चर्चा में नहीं है की ये मंत्री है इसलिए चर्चा में इसलिए है क्योकि इन्होने साथ हज़ार करोड़ का घोटाला किया, और बरखा दत्त का नाम इसलिए यहाँ शामिल है क्योकि वीर संघवी और बरखा ने मिल कर राजा के सिफारिश की थी सरकार से, क्योकि इनके इनसे मधुर सम्बन्ध है | वैसे सिफारिश करने का कोई अधिकार नहीं है इनके पास लेकिन बड़े नेताओं से जानकारी, अच्छी उठ बैठ और पत्रकार होने का रौब था | अब आप देखिये की किस प्रकार ले आदमी की सिफारिश की इन्होने |


3. मुंबई में हुए २६/११ के हमले में की गयी इनकी कवरेज इतनी बकवास थी, नहीं नहीं ये मेरा मत नहीं है सब कह रहे थे पत्रकारिता के विशेषज्ञ, और बात करू अपनी तो मुझे लगा नहीं एक सीनियर पत्रकार बोल रही है लग रहा था एक नौसिखिया पत्रकार बोल रहा है, वो भी बेतरतीब ढंग से | सच कहूँ मुझे शर्म आ रही थी वो रिपोर्ट देखते हुए | और उनकी रिपोर्ट पर बवाल इसलिए भी मचा की उन्होंने पुलिस की कर्मठता पर सवाल उठाया था | लाइव कवरेज में बरखा एक बेहद फटेहाल व्यक्ति से पूछती हैं कहाँ है तुम्हारी पत्नी मार दी गयी तो क्या बंधक नहीं बना रखा है उसे ? जी नहीं वो वहां छुपी है उस जगह |दूसरा दृश्य लगभग ४ घंटे के आपरेशन के बाद जैसे ही सेना का एक जनरल बाहर निकल कर आते है और खबर देते है कि और कोई बंधक ओबेराय में नहीं है बरखा कि ओर से एक और ब्रेकिंग न्यूज फ्लेश होती है अभी भी ओबेराय में १०० से अधिक बंधक मौजूद है | अब आप सोच सकते है की क्या स्तर है इनकी पत्रकारिता का |


4. सभी को बोलने का अधिकार है, यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लेकिन जब नीदरलैंड के एक अप्रवासी भारतीय चैतन्य कुंटे ने २६/११ के दौरान अपने ब्लॉग पर बरखा की इस पत्रकारिता पर सवाल खड़े किये तो बरखा और एन डी टी वी इंडिया ने पहले तो चैतन्य से माफ़ी मांगने को कहा और फिर उसके खिलाफ मुक़दमे की कार्यवाही शुरू कर दी| क्या अभिव्यक्ति का अधिकार सिर्फ बरखा या एन.डी.टी वी को है, और सच को आप कैसे भी कानूनी कार्यवाही से कैसे दबा सकते है ?


ऐसे ही एक फेसबुक में ‘Can you please take Barkha off air’ नामक ग्रुप चलने वाली निवेदिता दास कहती हैं “बरखा दत्त में,मे उस एक अति महत्वकांक्षी महिला को देखती हो जो खबरों की कवरेज के समय खुद को यूँ ब्लो उप करती है जैसे ये खबर ऑस्कर के लिए चुनी जाने वाली है ,जब लोग डरे सहमे और मौत के बीच रहते हैं उस वक्त का वो अपने और अपने चैनल के लिए उनके उनकी भावनाओ को बखूबी इस्तेमाल करना जानती है, जब वो ख़बरों की कवरेज नहीं कर रही होती है तब भी उसमे वही अति महत्वाकांक्षी महिला साँसे लेती रही थी ,जिसका सबूत इस एक घोटाले से सामने आया है | जो स्पेक्ट्रम घोटाला था जिसमे वीर संघवी, बरखा दत्त और नीरा राडिया जैसी सत्ता के दलाल सामिल थे |

कांग्रेस की रोटी तोड़ने वाला मीडिया यह नहीं दिखाता है ... यह है मोदी का गुजरात

Wednesday, October 20, 2010

Its just like Open Source : Open medicines !!

सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस संस्थान के संस्थापक ...

डॉ बिन्देश्वरी पाठक (फाउंडर "सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस संस्थान")

इन्हें आज तक भारत रत्न आज तक इसलिये नहीं मिला कि इन्होने माँगा ही नहीं हर साल भारत रत्न मिलने वालों के नाम के लिये भा.ज.पा अटल बिहारी वाजपेयी, बसपा स्व. काँशी राम जी, और भी ईसी तरह के राजनैतिक नाम या खिलाडी या अभिनेता इन लोगों के नाम ही अधिकतर उछलते हैं |

जो लोग समाज के बीच रहकर समाज के लिये कुछ करते हैं उन्हें पदम भूषण जैसी उपाधी (जो कि सैफ अली खान को भी मिली है) दे कर पीछे हट गयेमेरे सभी पत्रकार मित्रों से मैं कहना चाहूँगा जरा कुछ ऐे लोगों के बारे में लिखें आम आदमी को भी इन लोगों से परिचित करवायें इन्हे उचित सम्मान दिलवायें ताकि ऐसे लोग और प्रोतसाहित हों |

डॉ बिन्देश्वरी पाठक (जन्म: ०२ अप्रैल, १९४३) विश्वविख्यात भारतीय समाजशास्त्री एवं उद्यमी हैं। उन्होने सन १९७० मे सुलभ इन्टरनेशनल की स्थापना की। उन्होने अपने कार्यों के लिये भारत एवं विश्व के कई प्रतिष्टित पुरस्कार प्राप्त किये।

डॉ बिन्देश्वर को भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया है। उन्होने इनर्जी ग्लोब पुरस्कार, पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने के लिये प्रियदर्शिनी पुरस्कार एवं सर्वोत्तम कार्यप्रणाली (बेस्ट प्रक्टिसेस) के लिये दुबई अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किया है।अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा संगठन (आईआरईओ) का अक्षय उर्जा पुरस्कार (सन् २००९)

इन्हें आज तक भारत रत्न आज तक इसलिये नहीं मिला कि इन्होने माँगा ही नहीं हर साल भारत रत्न मिलने वालों के नाम के लिये भा.ज.पा अटल बिहारी वाजपेयी, बसपा स्व. काँशी राम जी, और भी ईसी तरह के राजनैतिक नाम या खिलाडी या अभिनेता इन लोगों के नाम ही अधिकतर उछलते हैं |

जो लोग समाज के बीच रहकर समाज के लिये कुछ करते हैं उन्हें पदम भूषण जैसी उपाधी (जो कि सैफ अली खान को भी मिली है) दे कर पीछे हट गयेमेरे सभी पत्रकार मित्रों से मैं कहना चाहूँगा जरा कुछ ऐे लोगों के बारे में लिखें आम आदमी को भी इन लोगों से परिचित करवायेंइन्हे उचित सम्मान दिलवायें ताकि ऐसे लोग और प्रोतसाहित हों

Thursday, October 14, 2010

ताज महल मकबरा... नहीं मंदिर है !!

ताज महल एक शिव मंदिर है... - प्रो.पी. एन. ओक को छोड़ कर किसी ने कभी भी इस कथन को चुनौती नही दी कि... "ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था"

प्रो.ओक अपनी पुस्तक "TAJ MAHAL - THE TRUE STORY" द्वारा इस बात में विश्वास रखते हैं कि

सारा विश्व इस धोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था..

प्रो.ओक कहते हैं कि... ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर, एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था. अपने अनुसंधान के दौरान प्रो.ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था. 

शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी " ने अपने "बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000 से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है..जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है कि, शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बाद, बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके 6 माह बाद, तारीख़15 ज़मदी-उल- अउवल दिन शुक्रवार,को अकबराबाद आगरा लाया गया फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए, आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) मे पुनः दफनाया गया, लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे, पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.

इस बात कि पुष्टि के लिए यहाँ ये बताना अत्यन्त आवश्यक है कि जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा जयसिंह को दिए गए थे |

यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था ,

उदाहरनार्थ  हुमायूँ, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे दफनाये गए हैं ....

प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है |


"महल" शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता
यहाँ यह व्याख्या करना कि महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है | वह कम से कम दो प्रकार से तर्कहीन है |
पहला शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था बल्कि उसका नाम मुमताज-उल-ज़मानी था ...
और दूसरा किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए यह समझ से परे है |

प्रो.ओक दावा करते हैं कि, ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का बिगड़ा हुआ संस्करण है, साथ ही साथ ओक कहते हैं कि

मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी, चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है क्योंकि शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि नही करता है |

इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षतः समर्थन कर रहे हैं | तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान् शिव को समर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था |

 न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष पुराना है |

 मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष (1631) में हुई थी उसी वर्ष के अंग्रेज भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था 

यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन्1638 (मुमताज कि मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया,,परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियो मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था | 

==> फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा, के लिखित विवरण से पता चलता है कि, औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था | 

प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि, ताजमहल विशाल मकबरा न होकर विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है |

आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं,जो आम जनता की पहुँच से परे हैं 
प्रो. ओक. जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति,त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं.

ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है... यदि यह सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही टपकाया जाता,जबकि प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है, फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या मतलब ??

राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं.... 

प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे

ज़रा सोचिये !! 

प्रो. पी. एन. ओक का अनुसंधान पूर्णतयः सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत, शानदार एवं विश्व के महान आश्चर्यों में से एक भवन, "तेजो महालय" को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ को क्यों ???

तथा...

इससे जुड़ी तमाम यादों का सम्बन्ध मुमताज-उल-ज़मानी से क्यों ?? 

आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से
रूहें लिपट के रोटी हैं हर खासों आम से 
अपनों ने बुना था हमें, कुदरत के काम से
फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से 

Tuesday, September 21, 2010

सबसे बड़ा धप्पा ... TAJ MAHAL - P.N. OAK

ताज महल एक शिव मंदिर है... - प्रो.पी. एन. ओक को छोड़ कर किसी ने कभी भी इस कथन को चुनौती नही दी कि... "ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था" India- Behind the Lens



Wednesday, September 15, 2010

जामिया स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स - अभी भी कार्य प्रगति पर है !!

कॉमनवेल्थ गेम्स को सिर्फ २० दिन शेष है लेकिन आज भी आयोजन स्थल (जामिया स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स) जहां खेल होने है, निर्माण काम चल रहा है | चीन में दो महीने बाद एशियाड होने है, लेकिन आज चीन पूरी तरह तैयार है |

प्राथमिक बाल विद्यालय, संत नगर, दिल्ली - ६५ - शीला जी क्या यहाँ अपने बच्चो को पढने के लिए भेजना पसंद करती ?

हालत नई - अंदाज़ वही ... the all new improved Delhi Govt. and authorities//...

Tuesday, September 14, 2010

जाम लगने का एक ही कारण है 'अव्यवस्था'

 DTC एवं ब्लू-लाइन का सड़कों के किनारे खड़े हो जाना... जल विहार टर्मिनल किस लिए है..

Monday, August 30, 2010